शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
दीपावली के दिन 12 नवंबर को उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिल्क्यारा धंसने से 40 मजदूर अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। मजदूरों को बचाने के लिए उत्तराखंड सरकार से लेकर केंद्र तक निगाहें लगी हुई है। लेकिन 7 दिन बाद भी इन मजदूरों को बाहर निकाला नहीं जा सका है। शुक्रवार को जो हालात बता रहे हैं कि अभी कम से कम 2 दिन का समय और लग सकता है। टनल में फंसे मजदूरों के लिए ऑक्सीजन, खाद्य सामग्री, दवाइयों की आपूर्ति लगातार जारी है। इन सभी 40 मजदूरों की जान बचाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। सीएम धामी घटनास्थल पर दौरा भी कर चुके हैं। वहीं मुख्यमंत्री लगातार रेस्क्यू अभियान की मॉनिटरिंग भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्रालय की ओर से भी घटना की मॉनिटरिंग की जा रही है। उत्तराखंड सरकार ने घटना की जांच के लिए छह सदस्यीय कमेटी बनाई है। इस घटना के बाद एक बार फिर उत्तराखंड में सन संसाधनों की पोल खोल दी है। टनल से मजदूरों को निकालने के लिए अमेरिका से आई हैवी ऑगर मशीन के रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है।
रेस्क्यू टीम अगर स्टील के पाइप को मलबे में छेद कर मजदूरों तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती है तो इस पाइप के जरिए टनल में फंसे मजदूरों को निकाला जा सकता है। इस मशीन की खासियत है कि यह पांच मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से टनल को काटने में सक्षम है। सुरंग के एक हिस्से के ढहने से फंसे 40 मजदूरों को निकालने के लिए दिल्ली से एयरफोर्स के विमानों से एक भारी ऑगर मशीन चिन्यालीसौड़ भेजी गई। बताया जा रहा है कि राज्य सरकार के अनुरोध पर पीएमओ के आदेश पर सेना की अति आधुनिक ऑगर मशीन उपलब्ध कराई गई है। इन मशीनों को ग्रीन कॉरिडोर बनाकर घटनास्थल के लिए रवाना कर दिया गया है। इससे पहले मंगलवार देर रात मलबे की ड्रिलिंग के दौरान भूस्खलन होने व मिट्टी गिरने से काम को बीच में रोकना पड़ा था। बाद में ऑगर मशीन भी खराब हो गई थी। इसके बाद भारतीय वायु सेना के सी 130 हरक्यूलिस विमानों के जरिए 25 टन वजनी, अत्याधुनिक, बड़ी ऑगर मशीन दो हिस्सों में दिल्ली से उत्तरकाशी पहुंचाई गई। रेस्क्यू टीम से जुड़े अफसरों के मुताबिक इसके पहले जिस ड्रिलिंग मशीन की मदद ली जा रही थी, वह काफी धीमी थी और उसमें तकनीकी समस्याएं भी आ रही थीं। मंगलवार को रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मलबा गिरने से भी मशीनों को काफी नुकसान पहुंचा था।
सीएम धामी मजदूरों को निकालने के लिए कर रहे हैं मॉनिटरिंग–
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। इस बैठक में मुख्यमंत्री सुरंग में फंसे 40 मजदूरों को निकालने के लिए चल रहे राहत और बचाव कार्य की समीक्षा कर रहे हैं। सिलक्यारा सुरंग के अंदर फंसे 40 श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए भारी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड में बन रही सभी सुरंगों की समीक्षा की जाएगी। सीएम धामी ने कहा, ‘सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तहत आने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) सुरंग की निगरानी कर रही थी । हमें ऐसी सुरंगें चाहिए और उनमें से कई निर्माणाधीन हैं। जहां भी ऐसी सुरंगें बनाई जा रही हैं, हम उनकी समीक्षा करेंगे। शासन की ओर से गठित विशेषज्ञ दल के सभी सदस्य अपने-अपने आकलन के मुताबिक रिपोर्ट तैयार करने में जुट गए हैं। इसके बाद एक संयुक्त रिपोर्ट तैयार की जाएगी। जिसमें सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन व भविष्य की स्थिति को लेकर स्पष्ट राय कायम की जाएगी। उत्तरकाशी के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक रुहेला ने बताया कि अधिकारी फंसे हुए श्रमिकों के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए हैं और उनसे धैर्य ना खोने के लिए कह रहे हैं। टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह ने भी सुरंग का दौरा किया। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें फंसे हुए मजदूरों को निकालने में तेजी लाने के लिए सभी तकनीकी सहायता प्रदान कर रही हैं। बताया जा रहा है कि सुरंग के अंदर फंसे कुछ मजदूरों की तबीयत भी बिगड़ने लगी है। रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी होते देख घटना स्थल पर मौजूद अन्य मजदूरों और सुरंग में फंसे मजदूरों के परिवार के लोगों गुस्सा फूट गया है। इन लोगों ने सुरंग के बाहर प्रदर्शन किया । ये सभी लोग सरकार के ढीले रवैये से खुश नहीं है। मीडिया से बातचीत में सुरंग में फंसे लोगों के परिजनों ने जल्द से जल्द अपने लोगों को बाहर निकालने की मांग की। सिलक्यारा पहुंचे प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि सुरंग में फंसे सभी मजदूर सुरक्षित हैं और उनसे लगातार बातचीत हो रही है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 12 नवंबर की सुबह करीब 5 बजे टनल धंसने का हादसा हुआ था। दरअसल, ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा और डंडालगांव के बीच 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग बन रही है। शिफ्ट बदलते वक्त टनल में 40 मजदूर फंस गए थे। 12 नवंबर को टनल से मलबा हटाकर राहत एवं बचाव कार्य शुरू किया गया था। वहीं 13 नवंबर को गिर रहे मलबे को रोकने के लिए प्लास्टर लगाने का ऑपरेशन चलाया गया। इसके बाद 14 नवंबर को छोटी मशीन से मलबे में ड्रिल करने का रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया था। पर तीनों ऑपरेशन असफल रहे थे। 15 नवबंर को हैवी कैपेसिटी की ड्रिलिंग मशीन लाई गई थी और 16 नवंबर को सुबह 11 बजे ड्रिल के जरिए पाइप मलबे में डालने का ऑपरेशन शुरू हुआ था। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगले दो-तीन दिनों तक कोई अच्छी खबर आ सकती है।
केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने घटनास्थल का दौरा कर रेस्क्यू अभियान का किया निरीक्षण–
गुरुवार को केंद्रीय नागर विमानन, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री वीके सिंह सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन का निरीक्षण करने पहुंचे। वीके सिंह रेस्क्यू अभियान का निरीक्षण और समीक्षा की। केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा कि काम चल रहा है। चीजें भेज दी गई हैं। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अभी दो-तीन दिन का समय और लग सकता है। गुरुवार को बचावकर्मियों को एक और झटका उस समय लगा जब मलबे के जरिए ड्रिल करने और रास्ता बनाने के लिए लाई गई एक मशीन को इस कार्य को पूरा करने में कठिनाई हुई, जिसके कारण मजदूरों और स्थानीय निवासियों ने प्रशासन और निर्माण कंपनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। एनएचआईडीसीएल टनल परियोजना निदेशक अंशू मनीष खलको ने कहा कि हम 24 मीटर अंदर तक पहुंच गए हैं जो एक अच्छी स्थिति है। हम जल्द से जल्द दूसरे छोर तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। टनल में काम करने वाले कर्मियों को पास दिखाकर टनल में प्रवेश दिया जा रहा है। पुलिस, जिला प्रशासन, पैरामिलिट्री फोर्स के जवान मुस्तैद हैं। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ के अधिकारी लगातार निरीक्षण कर रहे हैं। मजदूरों को समय- समय पर ऑक्सीजन मुहैया कराई जा रही है। टनल में फंसे मजदूरों से लगातार बातचीत कर उनको मोटिवेट किया जा रहा है। रेस्क्यू ऑपरेशन की केंद्र सरकार और राज्य सरकार अध्यतन जानकारी ले रही है।रेस्क्यू ऑपरेशन में अब नॉर्वे और थाईलैंड की विशेष टीमों की मदद भी ली जा रही है। बता दें कि थाईलैंड की लुआंग गुफा में हुए रेस्क्यू ऑपरेशन को सबसे कठिन माना जाता है। इसमें दुनिया के सबसे बेहतरीन गोताखोरों और थाईलैंड के सील कमांडो की मदद से गुफा में 17 दिनों तक फंसे रहे 12 लड़कों और उनके फुटबॉल कोच को सुरक्षित बचा लिया गया था। 23 जून 2018 को थाईलैंड के कई इलाकों में बारिश हो रही थी। इसी दौरान 12 बच्चों की एक फुटबॉल टीम और उनके कोच प्रैक्टिस के बाद सैर करने निकले थे। उनका प्लान थाम लुआंग गुफा देखने का था। उन्हें यह नहीं पता था कि अगले ही पल मौसम अपना मिजाज बदलने वाला है। बच्चे गुफा में घूमते-घूमते काफी अंदर तक पहुंच गए। तेज बारिश के कारण गुफा के निचले हिस्से में काफी पानी भर गया। बच्चे और उनके कोच जब तक ये समझ पाते पानी ज्यादा भर जाने से गुफा से बाहर निकलने का रास्ता बंद हो चुका था। इसके बाद कोच समेत सभी 12 बच्चे उसी गुफा में फंस गए थे। इन बच्चों के रेस्क्यू ऑपरेशन में 17 दिन लगे। रेस्क्यू टीम में 10,000 से ज्यादा लोग शामिल थे। आज भी थाईलैंड का यह रेस्क्यू दुनिया के सबसे जटिल ऑपरेशनों में एक है। वहीं, टनल के अंदर रेस्क्यू ऑपरेशन कैसे किया जाए? इस पर सुझाव के लिए नॉर्वे के जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट से भी मदद ली जा रही है। भारतीय रेलवे और उससे जुड़े निकायों जैसे रेल विकास निगम लिमिटेड, रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस (राइट्स) और इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन इंटरनेशनल लिमिटेड के एक्सपर्ट से भी सुझाव लिए जा रहे हैं।