चेतावनी और दोस्ती के बीच उलझा ट्रंप-मोदी का रिश्ता, आखिर क्या कहलाएगा? - Daily Lok Manch PM Modi USA Visit New York Yoga Day
September 6, 2025
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अंतरराष्ट्रीय

चेतावनी और दोस्ती के बीच उलझा ट्रंप-मोदी का रिश्ता, आखिर क्या कहलाएगा?





अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समय भारत को लेकर असमंजस और दबाव की राजनीति कर रहे हैं। कभी टैरिफ लगाकर भारत को कठोर संदेश देते हैं, तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “हमेशा का मित्र” बताकर रिश्तों में भरोसा जताते हैं। भारत और अमेरिका के रिश्तों में हाल के दिनों में खटास जरूर आई है, खासकर जब अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया। इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पुरानी दोस्ती को भुला नहीं पा रहे हैं। वह लगातार बयानों में कभी आलोचना करते हैं तो कभी रिश्तों की खासियत को गिनाते हैं। ट्रंप का कहना है कि मतभेदों के बावजूद मोदी के साथ उनकी मित्रता हमेशा बनी रहेगी। यह बयान न सिर्फ दोनों देशों के संबंधों की अहमियत दिखाता है, बल्कि उस व्यक्तिगत जुड़ाव को भी उजागर करता है, जो राजनीति से परे जाकर दो नेताओं को जोड़ता है। 5 सितंबर, शुक्रवार को ट्रंप ने फिर कहा कि मोदी मेरे हमेशा मित्र रहेंगे, भारत और अमेरिका के रिश्ते मज़बूत बने रहेंगे। लेकिन इस बयान के पीछे का राजनीतिक संदेश कहीं गहरा है, क्योंकि ठीक उसी समय चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन  शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक मंच पर दिखे। यही तस्वीर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए सबसे बड़ी चिंता का सबब बन गई । अमेरिकी मीडिया और विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप को डर है कि भारत धीरे-धीरे रूस और चीन की ओर झुक रहा है, और अगर यह नजदीकी बढ़ी तो अमेरिका को एशिया में अपनी रणनीतिक पकड़ ढीली करनी पड़ेगी। ट्रंप ने यहां तक संकेत दिया कि भारत ने रूस को चीन के हाथों खो दिया है, और अगर हालात नहीं बदले तो आने वाले समय में अमेरिका-भारत संबंध भी कमजोर हो सकते हैं। ट्रंप के इस बयान से साफ हो गया है कि व्हाइट हाउस भारत की विदेश नीति पर कड़ी नजर रखे हुए है। एक ओर अमेरिका भारत को अपना “हमेशा का दोस्त” कहकर साझेदारी का भरोसा दिला रहा है, तो दूसरी ओर यह चेतावनी भी दे रहा है कि रूस और चीन की नजदीकी भारत को भारी पड़ सकती है। वहीं, ट्रंप के कई करीबी मंत्री लगातार भारत पर दबाव बनाने वाली टिप्पणियां कर रहे हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहराता जा रहा है। ट्रंप की रणनीति दोहरी है। भारत पर टैरिफ और आर्थिक दबाव डालकर उसे अमेरिका की शर्तों के करीब लाना, और साथ ही दोस्ती का संदेश देकर यह दिखाना कि अमेरिका भारत को खोना नहीं चाहता। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत रूस और चीन के साथ अपने रिश्ते गहराते हुए भी अमेरिका के साथ संतुलन साध पाएगा? या फिर ट्रंप की चेतावनियां आने वाले समय में किसी बड़े भू-राजनीतिक टकराव की भूमिका तैयार कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती कभी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का बड़ा विषय रही है। 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित “हाउडी मोदी” कार्यक्रम हो या 2020 में अहमदाबाद में आयोजित “नमस्ते ट्रंप” रैली, दोनों नेताओं ने मंच साझा कर दुनिया को यह संदेश दिया था कि भारत और अमेरिका के रिश्ते अब नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। लाखों की भीड़ के सामने ट्रंप ने मोदी को “भारत का चैंपियन” बताया था और मोदी ने ट्रंप को “भारत का सच्चा मित्र” कहकर संबोधित किया था। उस समय में यह कहा जाने लगा था कि भारत-अमेरिका के रिश्ते अब तक के सबसे मजबूत दौर में हैं और दोनों नेता निजी रिश्तों की बदौलत कूटनीतिक दूरी को भी कम कर रहे हैं। लेकिन बीते कुछ समय से हालात बदल गए। शुल्क विवाद, रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन को लेकर अलग-अलग रुख ने दोनों देशों के बीच खटास पैदा कर दी। आज जब ट्रंप मोदी को फिर से “हमेशा का मित्र” कह रहे हैं, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या यह रिश्ते उसी भरोसे और गर्मजोशी के दौर में लौट पाएंगे, जैसा कभी हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप की तस्वीरों में नजर आता था।



अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दोस्ती वाले बयान पर पीएम मोदी ने भी दिखाई गर्मजोशी–



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-अमेरिका संबंधों की पुष्टि पर गर्मजोशी से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति की भावनाओं और द्विपक्षीय संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की गहराई से सराहना करते हैं और पूरी तरह से उनका समर्थन करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-अमेरिका संबंधों को एक व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी” की ओर अग्रसर बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पोस्ट में कहा, राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक आकलन की मैं गहराई से सराहना करता हूं और उनका पूर्ण रूप से समर्थन करता हूं। भारत और अमेरिका के बीच एक बहुत ही सकारात्मक और दूरदर्शी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है। इससे पहले, वाशिंगटन के साथ संबंधों पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को साप्ताहिक प्रेस वार्ता के दौरान द्विपक्षीय संबंधों के महत्व को रेखांकित किया। रणधीर जायसवाल ने कहा, अमेरिका और भारत के बीच यह संबंध हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे दोनों देश एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, जो हमारे साझा हितों, लोकतांत्रिक मूल्यों और लोगों के बीच मजबूत संबंधों पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा, “इस साझेदारी ने कई बदलावों और चुनौतियों का सामना किया है। हम अपने दोनों देशों द्वारा प्रतिबद्ध ठोस एजेंडे पर केंद्रित हैं और हमें उम्मीद है कि आपसी सम्मान और साझा हितों के आधार पर यह रिश्ता आगे बढ़ता रहेगा।



राष्ट्रपति ट्रंप के बदलते बयान और वैश्विक राजनीति का दबाव–


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कभी कठोर और कभी नरम रुख यह दिखाता है कि अमेरिका वैश्विक राजनीति के दबाव से अछूता नहीं रह सकता। चीन और रूस के करीब जाते भारत को लेकर उनकी चिंता साफ झलकती है, लेकिन इसी बीच वह मोदी से अपनी निजी मित्रता पर जोर देकर संतुलन साधने की कोशिश करते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह दोहरा रुख अमेरिका की कूटनीतिक मजबूरी और चुनावी दबाव दोनों को दर्शाता है। भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और तकनीकी सहयोग अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ा है, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर मतभेद गहराते जा रहे हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ बढ़ाने से व्यापारिक रिश्तों में तनाव है, वहीं दोनों देश इंडो-पैसिफिक रणनीति में साथ खड़े हैं। जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में यह संतुलन बनाए रखना ही दोनों देशों की सबसे बड़ी चुनौती होगी। ट्रंप के ये बयान और फैसले कई संदेश छुपाए हुए हैं। एक ओर वह भारत और मोदी के साथ रिश्तों को “खास” बताकर भारतीय-अमेरिकी वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर चीन-रूस के करीब जाते भारत को लेकर अपनी असहजता भी दिखा रहे हैं। अमेरिका और भारत के बीच रक्षा और तकनीकी सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है, लेकिन व्यापारिक मतभेद और भू-राजनीतिक समीकरण रिश्तों में खटास भी पैदा कर रहे हैं।





चीन में पीएम मोदी-पुतिन-जिनपिंग को एकजुट देख तिलमिला गया था अमेरिका–



चीन के तियानजिन में शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के एक मंच पर आना अमेरिका को रास नहीं आया। वहीं अमेरिका के आर्थिक दबाव के बाद चीन दौरे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफल बताया है। तीनों नेताओं की तस्वीर एक साथ होने पर अमेरिका बुरी तरह भड़क गया है। तियानजिन में पीएम मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक साथ मंच साझा करना और हाथों में हाथ डालकर तस्वीरें देना केवल औपचारिकता नहीं था, बल्कि इसका गहरा राजनीतिक संदेश भी निकला। यही बात अमेरिका को खटक गई। दरअसल, यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका लगातार रूस पर आर्थिक दबाव बना रहा है और चाहता है कि दुनिया उसके साथ खड़ी हो। लेकिन भारत रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखे हुए है। इससे मॉस्को की अर्थव्यवस्था को सहारा मिल रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्रेड सलाहकार पीटर नवारो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस और चीन के नेताओं के साथ नजदीकियों पर आपत्ति जताई है। नवारो ने कहा कि पीएम मोदी का शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के साथ खड़ा होना शर्मनाक है। पता नहीं वे क्या सोच रहे हैं। हमें उम्मीद है कि वे समझेंगे कि उन्हें रूस की बजाय हमारे साथ होना चाहिए। वहीं अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे मॉस्को की जंग मशीन को ताकत मिल रही है। उन्होंने भारत को बुरा खिलाड़ी करार दिया। बेसेंट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की  एससीओ बैठक को दिखावा बताया। हालांकि, उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत मजबूत लोकतंत्र हैं और मतभेद सुलझा सकते हैं। सोमवार को चीन के तियानजिन में एससीओ की बैठक हुई। बैठक से पहले फोटो सेशन के दौरान भारतीय पीएम मोदी, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन एक साथ नजर आए। तीनों नेताओं को एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए भी देखा गया। इसके अलावा पीएम मोदी द्विपक्षीय बातचीत के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन की कार में ही सवार होकर गए। दोनों के बीच करीब एक घंटे तक गोपनीय बातचीत हुई। इन तस्वीरों को डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ तीनों देशों की एकजुटता के तौर पर पेश किया गया। बैठक में पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ भी शामिल हुए।
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चीन की सार्थक यात्रा का समापन हुआ, जहां मैंने एससीओ शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और विश्व के विभिन्न नेताओं से संवाद किया। साथ ही प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर भारत का रुख स्पष्ट किया। मैं शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए राष्ट्रपति शी, चीन सरकार और जनता का आभारी हूं।

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