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आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जब आप सुनोगे तो आपको भी हैरानी के साथ हंसी भी आएगी। आज हमारी खबर का सार है “अपहरण” । आमतौर पर देश विदेशों में अभी तक आपने आदमियों का अपहरण होते हुए सुना होगा। लेकिन राजस्थान की गुलाबी नगरी यानी जयपुर में एक बंदर कुत्ते का अपहरण करके ले गया। यह घटना शुक्रवार, 17 मार्च दोपहर की है। जयपुर के गणगौरी बाजार बंदर कुत्ते के पिल्ले को दिनदहाड़े बीच बाजार में किडनैप कर ले गया । उसी दौरान वहां पर मौजूद लोगों की भीड़ लग गई। सभी लोग बंदर कुत्ते के पिल्ले को किए गए अपहरण को देखने लगे। बंदर ऊपर छज्जे पर मौजूद था। ये वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो के साथ में लिखा जा रहा है कि ‘बंदर ने किया कुत्ते का अपहरण और मांगी फिरौती। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स यह भी लिख रहे हैं कि कुत्ते से बदला लेने के लिए बंदर इस पिल्ले को उठा ले गया था।
वहीं कुछ लोग सोशल मीडिया पर इस वीडियो को देखकर यह भी लिख रहे हैं कि यह बंदर जयपुर उत्तर जिले से जयपुर दक्षिण की तरफ भागा है। अब जयपुर दक्षिण या उत्तर की पुलिस में से कौन इसे पकड़ेगी । अब आइए जान लेते हैं जयपुर के गणगौरी बाजार के बारे में। समृद्ध भवन निर्माण, परंपरा, विरासत और संस्कृति की लिए जयपुर की अपनी एक पहचान है। जयपुर के स्थापत्य,कला और संस्कृति पर यूनेस्को की भी मुहर लग गई है। यूनेस्को ने जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया है। जयपुर शहर को हेरिटेज सिटी यूं ही नहीं कहा जाता यहां हर कदम पर विरासत के निशां है। ब्रह्मपुरी से छोटी चौपड़ को जोड़ने वाले मार्ग को गणगौरी बाजार कहते हैं। यह एक प्राचीन रास्ता है। यहां पहले बाजार इतना विकसित नहीं था लेकिन समय के साथ यहां एक अच्छा खासा बाजार डवलप हो चुका है। गणगौरी बाजार में स्थित हैं एक प्राचीन दरवाजा जिसको गणगौरी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल जयपुर शहर में एक विशेष उत्सव मनाया जाता है। उसी उत्सव के कारण इस जगह को गणगौरी बाजार के नाम से जाना जाता है।
जयपुर शहर ऐतिहासिक दृष्टी से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही इसका सांस्कृतिक महत्व भी है यहां सालभर में विभिन्न त्योहार, उत्सव,शोभायात्राएं निकाली जाती है। जिनमें से महत्वपूर्ण है गणगौर और तीज माता की सवारी यह सवारी राजसी ठाठबाट के साथ निकाली जाती है। इस उत्सव को देखने के लिए आस-पास के गांवों के लोग भी एकत्रित होते हैं। वहीं देशी-विदेशी सैलानी भी विशेषतौर पर इस उत्सव को देखने के लिए आते हैं। इस उत्सव में हाथी,घोड़े,पालकी,जयपुर के प्रसिद्ध बैंड,ख्यातिनाम कलाकार इस उत्सव में अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। गणगौर माता की सवारी सिटी पैलेस से निकलने के बाद त्रिपोलिया गेट होते हुए छोटी चौपड़ पहुंती है और वहां से यह सवारी एक बाजार में प्रवेश करती है। जिस कारण इस बाजार को गणगौरी बाजार के नाम से जाना जाता है।
पहले यहां बाजार नहीं था केवल रास्ता ही था जहां से माता की सवारी निकला करती थी लेकिन अब यहां बाजार विकसित हो चुका है। गणगौरी बाजार से माता की सवारी एक प्राचीन दरवाजे से होकर चौगान स्टेडियम पहुंचती है उस दरवाजे को गणगौरी दरवाजे के नाम से जाना जाता है। चौगान स्टेडिम से माता की सवारी पौण्ड्रिक उद्यान और तालकटोरा की पाल पर पहुंचती है। यहां पोण्ड्रिक उद्यान के पास बनी ऐतिहासिक छतरी में माता को घेवर का भोग अर्पित किया जाता है उसके बाद यह शोभायात्रा सम्पन्न होती है और माता वापस सिटी पैलेस लोट जाती है। इस ऐतिहासिक उत्सव के कारण ही इस बाजार को गणगौरी बाजार कहा जाता है। क्योंकि यहां से राजसी ठाठ के साथ गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है।