बचपन में उंगलियों से….
माँ का आंचल पकड़ा,
पिता की उंगलियों को
पकड़कर चलना सीखा,
दादी-नानी से मांगा चांद-तारों को
उंगलियों के इशारों से ही
चंदामामा को बुलाकर….
कटोरे में दूध-भात खाया
थोड़ा बड़ा होने पर दोस्तों से
कानी उंगली को छुआकर…
कट्टी बोल झट से अलग हो गए
और फिर उतनी ही तेज़ी से
तर्जनी और मध्यमा को मिलाकर
एक दूसरे को छुआते हुए
दोस्त भी बन गए…..
मुट्ठी बंद कर अंगूठा दिखाने या
ठेंगा दिखाने का….
मतलब साफ होता कि
मैं आपका कोई लोड नही लेता..
तर्जनी किसी भी काम में
उंगली करने के लिए पर्याप्त होती
तब भी और शायद आज भी ….
ज़ाहिर है बवालिया तर्जनी का
जलवा आज भी कायम है….
दो उंगुलियों से गोला बनाकर,
तीन उंगलियों को…..
ऊर्ध्वाधर दिशा में रखने का
मतलब ही होता
उम्दा चीज़ या उम्दा वस्तु
बंद मुट्ठी लाख की…..
यह कहावत उन दिनों और
आज भी काबिले गौर है
पांच उंगलियों का संकेत
आशीर्वाद भाव या फिर
गाल लाल करना होता….
पांच उंगलियों के पंजे पर
कभी लोगों को गुमान था
अब तो कभी-कभार
चर्चा तो हो जाती है….पर…
साम्राज्य उसका अस्त ही है
स्कूल के दिनों में
तर्जनी लघुशंका की तो…..
तर्जनी और मध्यमा मिलकर
दीर्घशंका का स्पष्ट संकेत देती
मित्रों उंगलियों की लगभग यही
सनातनी संकेत व्यवस्था रही है
पर आज के परिवेश में
तर्जनी औऱ मध्यमा से बना
विजयी भाव….!
लोकप्रियता के शिखर पर है
समाज में सुखी इंसान वही है
जिसकी उंगलियों के इशारे पर
लोग नाच रहे हों और
वह व्यक्ति “विक्ट्री साइन” में
दो उंगलियों को फैलाकर
ऊपर की ओर दिखाते हुए
अपनी फोटो खिंचा रहा हो या
सेल्फ़ी ले रहा हो….
मित्रों इसके अलावा
एक अज़ीब सा सच यह भी है कि
आज वह व्यक्ति भी सुखी है
जिसने अपने होठों पर
बवालिया उंगली से
विराम दे रखा है…..
बवालिया उंगली से
विराम दे रखा है……
रचनाकार…..
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर,
जनपद जौनपुर
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