झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन 81 साल का निधन हो गया है, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, डॉक्टरों की एक पूरी टीम उनको मॉनिटर कर रही थी। लेकिन सोमवार सुबह उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। पिछड़ों के इतने बड़े नेता के निधन से राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर है, झारखंड के लिए भी इसे एक बड़ी क्षति माना जा रहा है।
गंगाराम अस्पताल ने भी शिबू सोरेन के निधन पर एक बयान जारी किया है। उस बयान में कहा गया है कि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को आज सुबह 8:56 बजे मृत घोषित कर दिया गया। लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। वे किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी हुआ था। पिछले एक महीने से वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद अपने पिता के निधन की पुष्टि की है और उनकी तरफ गहरा शोक भी व्यक्त किया गया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्स पर शिबू सोरेन ने लिखा कि आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं। उनके अलावा कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर कहा, “शिबू सोरेन जी केवल झारखंड ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों की सबसे बड़ी आवाज, पहचान और सम्मान के प्रतीक थे… मैं उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं।
बता दें, शिबू सोरेन ने 38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व किया है और उन्हें पार्टी के संस्थापक संरक्षक के रूप में जाना जाता है। इस बीच, पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन को ब्रेन स्ट्रोक के बाद दिल्ली के अपोलो अस्पताल ले जाया गया।
शिबू सोरेन ने 18 साल की उम्र में संथाल नवयुवक संघ का गठन किया था। 1972 में, सोरेन ने बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता एके रॉय और कुर्मी-महतो नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झामुमो का गठन किया और इसके महासचिव बने।
सोरेन 1977 में अपना पहला लोकसभा चुनाव हार गये थे, लेकिन बाद में 1980 में दुमका से पहली बार लोकसभा के लिए चुने गये। इसके बाद वे 1989, 1991 और 1996 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। वह 2002 में राज्यसभा के लिए चुने गए, लेकिन उसी वर्ष लोकसभा उपचुनाव में ड्यूमा सीट जीतने के बाद उन्होंने अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। 2004 में पुनः निर्वाचित होने के बाद सोरेन मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री थे, लेकिन 30 साल पुराने चिरुडीह मामले में उनके नाम गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें इस्तीफा देने का निर्देश दिया गया।
गिरफ्तारी वारंट के बाद वह भूमिगत हो गए, क्योंकि 23 जनवरी 1975 को 10 लोगों की हत्या के आरोप में 69 अन्य लोगों के साथ उन्हें भी मुख्य आरोपी पाया गया। सोरेन ने जुलाई 2004 में इस्तीफा दे दिया था और न्यायिक हिरासत के दौरान जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिल गई थी।