उत्तराखंड के लिए आज बहुत ही खास दिन है। एक ऐसा लोकपर्व जिसे देवभूमि के लोग बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं। इस पर्व को ‘हरेला’ कहा जाता है। हरेला उत्तराखंड में हरियाली से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड को अध्यात्म, हरियाली, पहाड़, कलकल बहती नदियां और हरे-भरे मनोहारी दृश्य के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। इसके साथ यहां चार धाम यात्रा करने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। वहीं हरिद्वार हरकी पैड़ी और ऋषिकेश में भी हर साल लाखों लोग पहुंचते हैं। इसके साथ देवभूमि में कई लोग पर्व भी धूमधाम के साथ मनाया जाते हैं। हरेला ऋतु परिवर्तन के साथ भगवान शिव के विवाह की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे हरकाली पूजन कहते हैं और आज के दिन से ही पहाड़ में मेले उत्सव की शुरुआत भी होती है। कहा जाता है कि इस दिन कोई भी व्यक्ति इस दौरान हरी टहनी भी रोप दे तो वह फलने लगती है। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत राज्य के लोगों को हरेला पर्व पर शुभकामनाएं दी हैं। हरेला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है, जो उत्तराखंड में मनाए जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है। वैसे हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में मनाया जाता है, इन तीनों में से सावन महीने में मनाया जाने वाला हरेला विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। ‘सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले हरेला बोया जाता है। इसे संक्रांति के दिन काटा जाता है। त्योहार के 9 दिन पहले ही 5 से 7 तरह के बीजों की बुआई की जाती है। इसमें मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट शामिल होते हैं। इसे टोकरी में बोया जाता है और 3 से 4 दिन बाद इनमें अंकुरण की शुरुआत हो जाती है। इसमें से निकलने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही हरेला कहा जाता है। इन पौधों को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं’। हरेला लोकपर्व के मौके पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं।