भाजपा के लिए 5 अगस्त की तारीख एक बार फिर से बड़े फैसले की गवाह बनने जा रही है। इससे पहले केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को भी जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी थी। 35 दिनों के बाद एक बार फिर से 5 अगस्त की तारीख आने वाली है। इस बार भी केंद्र सरकार 5 अगस्त को बड़ा ऐतिहासिक फैसला कर सकती है।भाजपा के नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि, 5 अगस्त को हुआ राम मंदिर का निर्णय हुआ था। 5 अगस्त को ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई थी। अब 5 अगस्त को ही यूनिफार्म सिविल कोड भी आने वाला है, जय श्री राम। कपिल मिश्रा के किए गए आज ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियों में है।
आज बात करेंगे एक ऐसे कानून की जिसे केंद्र की मोदी सरकार से लेकर सभी भाजपा शासित सरकारें लाने की तैयारी में जुटी हुई हैं। वहीं उत्तराखंड की धामी सरकार तो एक कदम आगे निकल गई है। उत्तराखंड सरकार इस कानून को जल्द से जल्द लागू करने के लिए तैयार भी है।हम बात कर रहे हैं यूनिफॉर्म सिविल कोड यूसीसी की। उत्तराखंड में धामी सरकार के द्वारा लाया जा रहा समान नागरिक संहिता का मसौदा पूरी तरह से तैयार हो गया है। शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में उत्तराखंड यूसीसी कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस रंजना देसाई ने इसकी घोषणा की। प्रेस कॉन्फ्रेंस में रंजना देसाई ने कहा कि मुझे आपको यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि उत्तराखंड के प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का मसौदा अब पूरा हो गया है। ड्राफ्ट के साथ विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट मुद्रित की जाएगी। इसके बाद इसे उत्तराखंड सरकार को सौंपा जाएगा। जुलाई महीने से शुरू होने वाले संसद के मॉनसून सत्र में मोदी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पारित कराने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ा दांव खेलने जा रही है। केंद्र सरकार आगामी मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता का बिल संसद में पेश कर सकती है। केंद्र सरकार के अलावा उत्तराखंड की धामी सरकार भी विधानसभा के मानसून सत्र में इस विधेयक को पारित करा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल में दिए गए बयान के बाद सियासी माहौल गरमा गया है। 3 दिनों से समान नागरिक संहिता को लेकर पूरे देश भर में बहस छिड़ी हुई है। बता दें कि मंगलवार, 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर 5 नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का उद्घाटन करने गए थे।
वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने यहां पर एक जनसभा को भी संबोधित किया। अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि समान नागरिक संहिता लाओ लेकिन ये वोटबैंक के भूखे लोग, वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने पसमंदों मुसलमानों का शोषण किया है लेकिन उनकी कभी चर्चा नहीं हुई। उन्हें आज भी बराबरी का हक नहीं मिलता। प्रधानमंत्री ने कहा भारत के मुसलमान भाई बहनों को ये समझना होगा कि कौन से राजनीतिक दल उनको भड़का कर उनका राजनीतिक फायदा ले रहे हैं। हम देख रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पायेगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान के बाद विपक्षी पार्टियों के बयान आना शुरू हो गए। यूनिफॉर्म सिविल कोड को मुद्दे को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ी हुई है। विपक्ष के तमाम नेता केंद्र की मोदी सरकार को इस मुद्दे पर घेरे हुए हैं। कांग्रेस ने यूसीसी को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वो ऐसा अपनी असफलता छुपाने के लिए कर रही है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी पीएम मोदी के यूसीसी वाले बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि पीएम को पहले देश में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के बारे में जवाब देना चाहिए। वह कभी मणिपुर मुद्दे पर नहीं बोलते, पूरा राज्य जल रहा है। वह सिर्फ इन सभी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि पीएम मोदी नौकरी देने का वादा नहीं कर पा रहे तो ऐसा कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू भी कह रही है कि यूसीसी पर सभी लोगों को विश्वास में लेने की जरूरत है।ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं। शायद भारत के प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 29 समझ नहीं आता। क्या आप यूसीसी के नाम पर देश से उसकी बहुलता और विविधता को छीन लेंगे। दरअसल, लॉ कमीशन की तरफ से सुझाव मांगे जाने के बाद से यूसीसी का विषय एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। कमीशन ने आम लोगों और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से इस विषय पर अपनी राय देने को कहा है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर संसदीय समिति ने 3 जुलाई को बुलाई बैठक–
बता दें कि यूनीफॉर्म सिविल कोड को लेकर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है। कानून और कार्मिक पर स्थायी समिति के कार्यक्रम के अनुसार 14 जून, 2023 को भारत के विधि आयोग द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस पर कानून पैनल और कानून मंत्रालय के कानूनी मामलों और विधायी विभागों के प्रतिनिधियों के विचारों को सुनेगी। पर्सनल लॉ की समीक्षा विषय के तहत समान नागरिक संहिता पर विभिन्न हितधारकों से विचार आमंत्रित किया जा रहा है। कानून पैनल को अपने सार्वजनिक नोटिस पर लगभग 8.5 लाख प्रतिक्रियाएं मिली थीं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पहले ही कह चुके हैं कि यूसीसी को लेकर 13 जुलाई तक इंतजार करना चाहिए।
दरअसल, मुस्लिम समुदाय यूसीसी को धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं। वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरीयत के आधार पर मुस्लिमों के लिए कानून तय होते हैं. तीन तलाक कानून बनाने पर बरेलवी मसलक के उलमा ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि, मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं होती है। दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं। मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यूसीसी की वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। जो सीधे तौर पर मुस्लिमों के अधिकारों का हनन होगा। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि शरीयत में महिलाओं को संरक्षण मिला हुआ है। इसके लिए अलग से किसी कानून को बनाए जाने की जरूरत नहीं है। मुस्लिम धर्मगुरुओं को यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए मुसलमानों पर हिंदू रीति-रिवाज थोपने की कोशिश किए जाने का शक है। इनका मानना है कि यूसीसी लागू होने के बाद हर मजहब पर हिंदू रीति-रिवाजों को थोपने की कोशिश की जाएगी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी साहब ने बोर्ड अपनी स्थापना से ही समान नागरिक संहिता का विरोध करता रहा है। दुर्भाग्यवश सरकार और सरकारी संगठन इस मुद्दे को बार-बार उठाते हैं। मुहम्मद फजल-उर-रहीम मुजद्दिदी साहब ने आगे कहा कि भारत के विधि आयोग ने 2018 में भी इस विषय पर राय मांगी थी। बोर्ड ने एक विस्तृत जवाब दाखिल कर कहा था कि यूसीसी संविधान की भावना के विरुद्ध है। इससे नुकसान होने का डर है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद देश में हर धर्म के लिए एक कानून होगा–
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता में हर धर्म के लिए एक कानून होगा। देश में अभी अलग-अलग धर्मों के लिए शादी, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार जैसे मसलों को लेकर अलग-अलग कानून हैं। यूसीसी लागू होने के बाद हर धर्म के लोगों के लिए एक समान कानूनी व्यवस्था होगी। यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से सभी समुदाय के लोगों को एक समान अधिकार दिए जाएंगे। लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। कानून के तहत सभी को व्यक्ति को समान अधिकार दिए जाएंगे। लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी, ताकि वह कम से कम ग्रेजुएट हो जाएं। ग्राम स्तर पर शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। बगैर रजिस्ट्रेान के सरकारी सुविधा बंद हो जाएगी। पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार और अधिकार उपलब्ध होंगे। अभी पर्सनल लॉ बोर्ड में अलग-अलग कानून हैं। बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। उत्तराधिकार में लड़के-लड़की की बराबर की हिस्सेदारी (पर्सनल लॉ में लड़के का शेयर ज्यादा होता है) होगी। नौकरीपेशा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी। पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता का सहारा महिला का पति बनेगा। मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का हक मिलेगा, प्रक्रिया आसान कर दी जाएगी। हलाला और इद्दत पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी। लिव-इन रिलेशन का डिक्लेरेशन देना होगा। बच्चे के अनाथ होने पर गार्जियनशिप की प्रक्रिया आसानी की जाएगी। पति-पत्नी में झगड़े होने पर बच्चे की कस्टडी ग्रैंड पैरेंट्स (दादा-दादी या नाना-नानी) को दी जाएगी। जनसंख्या नियंत्रण पर भी बात होगी।