Phool Dei Festival सुख-समृद्धि का प्रतीक : देवभूमि में आज फूलदेई की धूम, मन को हर्षोल्लास से भर देता यह लोकपर्व, 'फूल देई, छम्मा देई' गाए जाते हैं लोकगीत - Daily Lok Manch PM Modi USA Visit New York Yoga Day
March 10, 2025
Daily Lok Manch
Recent उत्तराखंड

Phool Dei Festival सुख-समृद्धि का प्रतीक : देवभूमि में आज फूलदेई की धूम, मन को हर्षोल्लास से भर देता यह लोकपर्व, ‘फूल देई, छम्मा देई’ गाए जाते हैं लोकगीत

उत्तराखंड में आज पारंपरिक लोक पर्व फूलदेई धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। इस त्योहार को लेकर पूरे प्रदेश में उत्सव जैसा माहौल नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लोक पर्व फूलदेई पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है। इस त्योहार में प्रफुल्लित मन से बच्चे हिस्सा लेते हैं और बड़ों को भी अत्यधिक संतोष मिलता है। यह त्योहार लोकगीतों, मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करता है और संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने से ही नववर्ष होता है। नववर्ष के स्वागत के लिए कई तरह के फूल खिलते हैं। उत्तराखंड में चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार फूलदेई मनाया जाता है। बच्चे फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद रंगों के मनभावन फूलों से घर-आंगन सजाते हैं। और फूल देई, छम्मा देई लोकगीत गाते हैं। पूरे उत्तराखंड में चैत्र महीने के शुरू होते ही कई तरह के फूल खिल जाते हैं। इनमें फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, बुरांस आदि प्रमुख हैं. चैत्र संक्रांति से छोटे-छोटे बच्चे हाथों में कैंणी (बारीक बांस की डलिया) में फूल रखकर लोगों के घरों के दरवाजे-मंदिरों के बाहर रखते है। फूलों को घरों के बाहर रखने के पीछे शुभ की कामना है। घरों में कुशलता रहे और लोग स्वस्थ रहे, इस भावना से ऐसा किया जाता है। फूलदेई का त्योहार उत्तराखंडी समाज के लिए विशेष पारंपरिक महत्व रखता है। चैत्र की संक्रांति यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं। इसी को गढ़वाल में फूल संग्राद और कुमाऊं में फूलदेई पर्व कहा जाता है। जबकि, फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहते हैं। बसंत ऋतु के स्वागत के तौर पर भी फूलदेई पर्व मनाया जाता है। यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इन दिनों पहाड़ों में जंगली फूलों की भी बहार रहती है। चारों ओर छाई हरियाली और कई प्रकार के खिले फूल प्रकृति की खूबसूरती में चार-चांद लगाते हैं। पर्व के अवसर पर छोटे-छोटे बच्चे सूर्योदय के साथ ही घर-घर की देहली पर रंग-बिरंगे फूल को बिखेरते घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं। जिसके बाद घर के लोग बच्चों की डलिया में गुड़, चावल और पैसे डालते हैं। यह पर्व पर्वतीय परंपरा में बेटियों की पूजा, समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे की मान्यता पुराणों में है। मान्यता के अनुसार, शिवजी शीतकाल में तपस्या में लीन थे और इस दौरान कई साल बीत गए। बहुत से मौसम आकर गुजर गए लेकिन भगवान शिव की तपस्या नहीं टूटी। कई साल शिव के तपस्या में लीन होने की वजह से बेमौसमी हो गए थे। आखिर मां पार्वती ने युक्ति निकाली थी। कैंणी में फ्योली के पीले फूल खिलने के कारण सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरुप दे दिया था फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे पुष्प चुन लाएं जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए सब गणों ने पीले वस्त्र पहनकर सुंगधित फूलों की डाल सजाई और कैलाश पहुंच गए। शिवजी के तंद्रालीन मुद्रा को फूल चढ़ाए गए थे। साथ में सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आए महाराज। शिव की तपस्या टूटी और बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हुआ और वे प्रसन्न मन से इस त्यौहार में शामिल हुए थे।

Related posts

बड़ी कार्रवाई : भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री और दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बेटे को भी पार्टी से किया निष्कासित

BREAKING Monsoon Session Odinance Passed : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली में अध्यादेश से जुड़े विधेयक को दी मंजूरी, मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश हो सकता है यह बिल

admin

Diabetes blood sugar level Control Winter season Health is wealth हेल्थ के प्रति रहें सचेत : सर्दियों के मौसम में इन कारणों से बढ़ जाता है “ब्लड शुगर लेवल”, ऐसे करें डायबिटीज को कंट्रोल, दिनचर्या में शामिल करें यह जरूरी चीजें

admin

Leave a Comment