यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा जब अपनी ही राजभाषा को लेकर पूरा देश सहमत न हो। आज बात करेंगे “हिंदी” भाषा को लेकर। हाल के वर्षों में हिंदी ने दुनिया के तमाम देशों पर अपनी पहचान बना ली है। लेकिन भारत में ही अभी भी यह भाषा अपना इम्तिहान दे रही है। हिंदी में मधुरता और मिठास है, इसके बावजूद इस भाषा को लेकर हंगामा और राजनीति खूब होती रही है। 73 साल से देश के कई राज्यों में हिंदी भाषा को लेकर शुरू हुआ विरोध आज भी जारी है। विरोध की असली वजह राजभाषा और राष्ट्रभाषा को लेकर है। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ था उस समय सही समस्याएं सामने आकर खड़ी थी। इसमें एक भाषा को लेकर। हिंदी ऐसी भाषा थी जो देश में सबसे अधिक बोली जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को ‘जनमानस‘ की भाषा कहा था। संविधान सभा ने लंबी चर्चा के बाद 14 सितंबर 1949 को ये फैसला लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। इससे बाद ही दक्षिण के राज्यों ने इसका खुल कर विरोध किया था। हिंदी को राजभाषा के रूप में 73 साल हो गए हैं। लेकिन इसके बावजूद हिंदी देश में अपनी जड़े नहीं जमा पाई है। आज 14 सितंबर है । इस दिन हर साल हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभकामनाएं अभिनंदन करते हुए ट्वीट किया है। “पीएम मोदी ने लिखा, हिन्दी ने विश्वभर में भारत को एक विशिष्ट सम्मान दिलाया है। इसकी सरलता, सहजता और संवेदनशीलता हमेशा आकर्षित करती है। हिन्दी दिवस पर मैं उन सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, जिन्होंने इसे समृद्ध और सशक्त बनाने में अपना अथक योगदान दिया है”।
बता दें कि 2019 में जब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने एक देश एक भाषा की बात कही थी तब भी इसका जोरशोर से विरोध हुआ था। इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, डीएमके नेता स्टालिन, पन्नीरसेल्वम, संगीतकार एआर रहमान, कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी कनिमोझी समेत कई दक्षिण के नेता विरोध में कूद पड़े थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पूरे देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है, तो वह सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी भाषा ही है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने कभी भी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है बल्कि उल्टा हिंदी का विरोध करते ही रहे हैं । देश में हिंदी के पिछड़ने की एक वजह यह भी है कि हायर एजुकेशन हिंदी माध्यम से नहीं है। हिंदी दिवस के आते ही हिंदी पखवाड़ा, हिंदी सप्ताह या हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन दक्षिण के कई राज्यों में यह विरोध के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में समय समय पर केवल राजनैतिक लाभ के लिए हिंदी का विरोध होता है। यह परंपरा आजादी के पहले से जारी है। अब तो कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। भले ही देश के कुछ राज्यों में राजभाषा का विरोध होता हो लेकिन हिंदी भारत की पहचान है, जो दुनियाभर में बसे हिंदी भाषी लोगों को एकजुट करती है। आज पूरा विश्व एक ग्लोबल बाजार के रूप में उभर चुका है । जिसमें हिंदी स्वयं ही तीसरी भाषा के रूप में उभर गई है । संख्या के आधार पर विश्व में हिंदी भाषा, अंग्रेजी, चीनी मंदारिन भाषा के बाद तीसरे स्थान पर है। 2022 में ही हिंदी में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभी सूचना भी जारी होने लगी हैं। हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं आधिकारिक भाषा बनने की सबसे बड़ी दावेदार है। कई बड़ी-बड़ी कंपनियों में हिंदी खूब फल-फूल रही है । गूगल फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर और याहू समेत तमाम कंपनियों ने हिंदी भाषा का बहुत बड़ा बाजार बना दिया है और हिंदी के नाम पर ही अरबों रुपये की कमाई कर रहे हैं । दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां गर्व से हिंदी भाषा बोली जाती है। नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, पाकिस्तान,न्यूजीलैंड, यूएई, फिजी, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भी हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है।