आज पितृपक्ष का आखिरी दिन है। 15 दिन पितृपक्ष चलने के बाद सर्वपितृ अमावस्या को विदाई होती है। यह श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है। इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि के बारे में पता न हो। आज ही दिवंगत पूर्वज पृथ्वी से अपने लोक पर वापस लौटते हैं। जो व्यक्ति पितृपक्ष के 15 दिनों तक तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं कर पाते या जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सभी पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों को शांति देने के लिए और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है। इस बार 29 सितंबर को पितृ पक्ष या कहें श्राद्ध पक्ष शुरू हो गए थे।
सर्वपितृ अमावस्या यानि श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन होता है। इस बार सर्वपितृ अमावस्या 14 अक्टूबर को है। इस दिन भगवान विष्णु के हंस स्वरूप की पूजा करें। इस दिन भी पितृगणों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान किया जाता है, जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जातक की हर मनोकामना पूरी होती है। पितृ पक्ष में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है।
सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है। लेकिन अगर किसी को अपने पितरों की पुण्य तिथि याद न हो तो इस स्थिति में सर्व पितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रों के अनुसार आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ श्राद्ध तिथि कहा जाता है। इस दिन भूले-बिसरे पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन अगर पूरे मन से और विधि-विधान से पितरों की आत्मा की शांति श्राद्ध किया जाए तो न केवल पितरों की आत्मा शांत होती है बल्कि उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में भी सुख-शांति बनी रहती है। परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है और जीवन में चल रही परेशानियों से भी राहत मिलती है। मान्यता है कि पितरों का अगर श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है। जिसके प्रभाव से घर-परिवार के लोगों को भी आए दिन दु:ख-तकलीफ का सामना करना पड़ता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि अगर आप पितरों की पुण्य तिथि भूल चुके हैं तो इस तिथि पर उनका श्राद्ध कर दें। सर्व पितृ अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। यदि ऐसा संभव न हो तो आप घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। इसके बाद तर्पण, पिंडदान करें। इसके बाद ब्राह्मण को विधि पूर्वक भोजन कराएं। सर्वपितृ अमावस्या के भोग में खीर पूड़ी जरूर बनानी चाहिए। भोजन कराने के बाद ब्राह्मण को अपनी क्षमतानुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें। ऐसा करने से हमारे पितृ तृप्त होकर पितृलोक को लौटते हैं। इसी के साथ पितृपक्ष का समापन हो जाता है।