नीतीश सरकार का विकास वाला रोडमैप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार के विकास के लिए केंद्र के सहयोग का वादा, बिहार की जनता के मन को भा गया। नीतीश कुमार के लगभग 20 साल के कार्यकाल के बाद भी जिस तरह का प्रचंड बहुमत बिहार की जनता ने एनडीए को दिया है। इसकी कल्पना तो विपक्ष के दल कर भी नहीं रहे थे। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बंपर वोटिंग के बाद अब लगातार परिणाम सामने आ रहे हैं। इसके अनुसार NDA बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है। बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए किसी दल या गठबंधन के पास 122 सीटें होना जरूरी है। NDA 204 सीटों पर आगे है। वहीं महागठबंधन 33 सीटों पर सिमटती दिखाई दे रही है।
NDA में शामिल बीजेपी 101, जदयू 101 चिराग पासवान की पार्टी LJP (रामविलास) 29, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLM 6 और जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
वहीं महागठबंधन में शामिल RJD 143, कांग्रेस 61, वाम दल 30 और VIP 9 सीटों पर अधिकारिक तौर से मैदान में है। इसके अलावा कुछ सीटों पर महागठबंधन की फ्रेडली फाइट है, जिसमें चैनपुर, करगहर, नरकटियागंज, सिकंदरा, कहलगांव और सुल्तानगंज सीटें शामिल हैं।
बिहार में NDA की जीत पर पीएम मोदी ने X पोस्ट में लिखा…NDA ने राज्य का चौतरफा विकास किया है। लोगों ने हमारे ट्रैक रिकॉर्ड और राज्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के हमारे विजन को देखकर हमें भारी बहुमत दिया है। मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी और एनडीए परिवार के हमारे सहयोगी चिराग पासवान जी, जीतन राम मांझी जी और उपेंद्र कुशवाहा जी को इस जबरदस्त जीत के लिए हार्दिक बधाई देता हूं। इसी साल 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भी पीएम मोदी पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे। उसके पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी भाजपा कार्यालय पहुंचे थे।
महागठबंधन की पार्टियां तो आश्वस्त थीं कि बिहार में हुआ ताबड़तोड़ मतदान सरकार को हटाने के पक्ष में किया गया है, लेकिन जब ईवीएम से वोटों के नंबर निकलने शुरू हुए तो विपक्ष यकीन नहीं कर पा रहा था कि बिहार की जनता का भरोसा नीतीश कुमार और पीएम मोदी पर आज भी जारी है।
वैसे राजनीति के जानकार और राजनीतिक विश्लेषक के साथ चुनाव को करीब से समझने और देखने वाले लोग हमेशा से मानते हैं कि जब इतने बड़े स्तर पर वोटिंग होती है, तो यह हमेशा व्यवस्था के खिलाफ होती है। पांच या दस प्रतिशत के बीच वोटर चुनाव में मतदान करने के लिए ज्यादा आगे आते हैं तो कहा जाता है कि हो सकता है कि सत्ता पक्ष के साथ हों। लेकिन, जब भी 10 प्रतिशत और उसके ऊपर वोटर बूथ तक पहुंचते हैं। उसके बाद कयास लगाया जाता है कि वहां जनता जरूर बदलाव के मूड में है। शायद मतगणना से पहले तक यही कॉन्फिडेंस महागठबंधन के नेताओं के चेहरे पर भी झलक रहा था।
इस बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिली महाजीत के दो सबसे बड़े विजेता हैं। सबसे पहले नंबर पर नीतीश कुमार और दूसरे नंबर पर चिराग पासवान। चिराग की पार्टी ने इस चुनाव में गजब की बैटिंग की है और उनका स्ट्राइक रेट सबको चौंका गया है। जबकि इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद भी बिहार की जनता का भरोसा नीतीश पर कायम है। यह बड़ी बात है। इस चुनाव में जदयू ही वह पार्टी है, जिसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। जेडीयू को दोगुना फायदा साफ नजर आ रहा है।
दरअसल अपनी सेहत पर लगातार उठते सवाल और नेतृत्व पर महागठबंधन की तरफ से कसे जा रहे तंज के बावजूद भी नीतीश कुमार जनता की पसंद बने रहने में कामयाब नजर आ रहे हैं।
2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर बिहार के मुख्यमंत्री पद को संभालने वाले नीतीश कुमार बाद के वर्षों में गठबंधन तो बदलते रहे, लेकिन सत्ता उनके इर्द-गिर्द ही चलती रही। वह नौ बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। ऐसे में सत्ता विरोधी लहर का सामना करने के बाद भी नीतीश कुमार के नेतृत्व पर बिहार की जनता का भरोसा साफ दिखाता है कि चाहे नीतीश की सेहत को लेकर विपक्ष कितने भी सवाल खड़े कर ले। ‘नीतीशे कुमार’ को जनता प्रदेश की सेहत के लिए अच्छा मान रही है।
दूसरा कारण इस बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा होना भी है। 2010 से लगातार चार बिहार विधानसभा चुनावों में महिलाएं पुरुषों से अधिक मतदान कर रही हैं। पहले जहां महिलाएं 50 प्रतिशत तक ही वोट डालती थीं, वहीं अब 70 प्रतिशत से ऊपर का आंकड़ा पार कर चुकी हैं। इसे आप सिर्फ बिहार का सामाजिक परिवर्तन नहीं मानें, बल्कि यह महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी बड़ी उपलब्धि है। यह वोट बिहार में महिलाओं के लिए नीतीश सरकार की सोच की वजह से है। एक बार देखिए छात्रवृत्ति, आरक्षण, छात्राओं के लिए साइकिल और पोशाक योजना, स्वयं सहायता समूहों के जरिए रोजगार, उद्योग के लिए सहायता राशि और हाल ही में महिलाओं को सीधे बैंक खाते में 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता राशि। बिहार में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी और पंचायती राज में 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान, जिसकी वजह से प्रदेश में पुरुषों की तुलना में महिलाएं पहले से अधिक आत्मनिर्भर और जागरूक हुई हैं। ऐसे में साफ नजर आया कि इस बार महिलाओं ने किसी के कहने पर नहीं बल्कि अपने निर्णय से नीतीश के पक्ष में वोट किया।
नीतीश कुमार के नाम पर जिस तरह एनडीए के हर घटक दल के नेता सहमत दिखे, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इस मामले में बिखरा हुआ नजर आया। पहले चरण के लिए नामांकन की आखिरी तारीख तक महागठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया था। कई सीटों पर गठबंधन में शामिल दो-दो दलों के उम्मीदवार आमने-सामने थे। इस देरी का फायदा एनडीए को मिला। महागठबंधन ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की तो उसमें तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का और वीआईपी के मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया गया।
बिहार की जनता के द्वारा किए गए मतदान से साफ हो गया कि पीएम मोदी और नीतीश कुमार की विकास पुरुष वाली छवि वहां की जनता को पसंद है। एनडीए इस बात को स्थापित करने में कामयाब रहा कि डबल इंजन वाली सरकार ही बिहार में विकास को गति दे सकती है। एनडीए के दलों द्वारा इन्हीं दो चेहरों को आगे रखकर चुनाव लड़ा गया। वहीं बिहार की जनता अब जंगलराज की दोबारा वापसी नहीं चाहती और सुशासन चाहती है, को स्थापित कर पाने में भी एनडीए के नेता कामयाब रहे।
वहीं एनडीए से बाहर होने के चलते 2020 में जेडीयू और बीजेपी को नुकसान पहुंचाने वाले चिराग पासवान के सपोर्ट को इस बार इस बड़ी जीत में कहीं से भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। एनडीए को मिला उनका सपोर्ट बिहार में जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के लिए संजीवनी का काम कर गया।
इसके साथ ही बिहार के ग्रामीण और गरीबों के लिए जमीनी लाभार्थी योजनाओं ने जितना काम एनडीए के पक्ष में किया, उतना किसी और राज्य में नहीं दिखा। नीतीश का सात निश्चय और बीजेपी की केंद्रीय योजनाएं लाभार्थियों के लिए जातिगत रूप से संतुलित रहीं। ईबीसी और दलित वोटरों को इसका सबसे अधिक फायदा पहुंचा। वहीं नीतीश कुमार की महिलाओं के कल्याण पर टिकी योजनाओं ने प्रदेश में एनडीए को मजबूत आधार दिया।

