Chandrayaan-3 तीव्र गति से चांद के आर्बिट में दौड़ रहा है, हर पल ये यान भारत की उम्मीदों के साथ चांद के और करीब पहुंच रहा है। ऐसे में मून (Moon) से आने वाली तमाम जानकारियों को लेकर लोगों के बीच कौतुहल बना हुआ है। चांद पर जल… जीवन… संबंधित तमाम सवाल लोगों के जेहन में हमेशा से आते रहे हैं और इनको लेकर तलाश आज भी जारी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यदि आपको चांद पर कार चलाने का मौका मिले तो ये एक्सपीरिएंस कैसा होगा? यदि अब तक आपने इसके बारे में नहीं सोचा है तो एक बार सोचिए।
आज हम आपको एक ऐसे शख्स और उस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने न केवल धरती से तकरीबन 3.84 लाख किलोमीटर दूर चांद तक की यात्रा की बल्कि चंद्रमा की सतह पर कार भी दौड़ाई. हम बात कर रहे हैं, ‘डेविड रैंडोल्फ स्कॉट’ (David Randolph Scott) की, जिन्होनें अपने जीवन के 546 घंटे और 54 मिनट अंतरिक्ष में बिताएं है और साल 1971 में अपोलो-15 मिशन के दौरान चांद की सतह पर गाड़ी चलाने वाले पहले व्यक्ति बने। ये कोई आम कार नहीं थी, बल्कि ये एक मून रोवर व्हीकल था जिसे चांद पर की जा रही खोज में मदद के लिए तैयार किया गया था।
ये बात है 31 जुलाई 1971 की जब स्कॉट ने चांद पर किसी वाहन को चलाया था और वो ऐसा करने वाले दुनिया के पहले इंसान थें। 6 जून 1932 को अमेरिकी इंजीनियर, टेस्ट पायलट और नासा के अंतरिक्ष यात्री डेविड रैंडोल्फ स्कॉट का जन्म हुआ था। स्कॉट अपोलो 15 मिशन के कमांडर के रूप में चंद्रमा पर चलने वाले सातवें व्यक्ति बने, जो चौथी मानव मून लैंडिंग थी।
स्कॉट ग्रुप-3 अंतरिक्ष यात्रियों में से पहले थे, यानी 1963 में नासा द्वारा चुने गए अंतरिक्ष यात्रियों के तीसरे समूह को उड़ान भरने के लिए चुना गया था और वह अपने इस मिशन की कमान संभालने वाले भी पहले व्यक्ति थें। कमांडर नील आर्मस्ट्रांग के साथ मिलकर, स्कॉट ने जेमिनी 8 (16 मार्च, 1966) की उड़ान का संचालन भी किया था, इसलिए उन्हें मून मिशन का पूरा अनुभव भी था।
स्कॉट ने साल 1969 में कमांडर जेम्स मैकडिविट और मून मॉड्यूल पायलट रसेल श्वेकार्ट के साथ अपोलो-9 के लिए कमांड मॉड्यूल पायलट के रूप में भी कार्य किया, जो पूरी तरह से कॉन्फ़िगर किए गए अपोलो स्पेसक्रॉफ्ट द्वारा पृथ्वी के ऑर्बिटल क्वॉलिफिकेशन और वेरिफिकेशन टेस्ट को पूरा करने वाला पहला अपोलो मिशन था।
Apollo-15 मिशन और चांद की सतह पर ड्राइविंग—
26 जुलाई 1971 को अपोलो 15 को सुबह 9 बजकर 34 मिनट पर (स्थानीय समयानुसार) फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. इस मिशन में रैंडोल्फ स्कॉट, लूनर मॉड्यूल पायलट जेम्स इरविन और कमांड मॉड्यूल पायलट अल्फ्रेड वर्डेन शामिल थें। तकरीबन 4 दिन की यात्रा के बाद स्कॉट और इरविन हेडली का ये दल चांद की सतह पर रीले नामक घाटी के पास एपिनेन पर्वत के बेस पर उतरा।
सतह पर उतरने के बाद पहले इस दल ने मून रोवर की मदद से आसपास के इलाकों की निगरानी की और उन्हें लूनर मॉड्यूल (LM) से दूर तक यात्रा करने की अनुमति मिली। चांद की सतह पर फैले हेडली रीले और एपेनाइन पर्वत के कुछ हिस्सों का सेलेनोलॉजिकल निरीक्षण करने के लिए अपने उपकरणों को ले जाने के लिए स्कॉट और इरविन ने “रोवर -1” का उपयोग किया। इस दौरान उन्होनें चांद की सतह से तकरीबन 82 किलोग्राम चंद्र सामग्री एकत्र की थी।
कैसा था चांद की सतह पर दौड़ने वाला वाहन—
लूनर रोविंग व्हीकल (LRV), जिसे “मून बग्गी” (Moon Buggy) के नाम से भी जाना जाता है, मई 1969 से डेवलप किया जा रहा है, इसकी जिम्मेदारी बोइंग (Boeing) को दी गई थी। बोइंग वही अमेरिकी कंपनी है जो दुनिया भर में हवाई जहाज, रोटरक्राफ्ट, रॉकेट, उपग्रह, दूरसंचार उपकरण और मिसाइलों का डिजाइन, निर्माण और बिक्री करती है. बहरहाल, LRV की बात करें तो चांद की सतह पर उतारते समय इसका वजन 209 किलोग्राम था और दो अंतरिक्ष यात्रियों और उनके उपकरणों को ले जाते समय इसका वजन 700 किलोग्राम था।
इस रोविंग व्हीकल के प्रत्येक पहियों में 200 W की क्षमता का इलेक्ट्रिक मोटर इस्तेमाल किया गया था। इसे 10 से 12 किमी/घंटा की स्पीड से चलाया जा सकता था। हालाँकि इसे कोई भी अंतरिक्ष यात्री चला सकता था, लेकिन इसको चलाने की जिम्मेदारी कमांडर को दी गई थी। खास बात ये है कि, इस लूनर रोविंग व्हीकल को केवल 17 महीनों में तैयार किया गया था और इसने बिना किसी परेशानी के चांद की सतह पर आसानी से दौड़ लगाई। लूनर रोविंग व्हीकल का उपयोग करते हुए, अपोलो-15 के अंतरिक्ष यात्रियों ने तीन अलग-अलग ट्रेक पर लगभग 28 किमी की दूरी तय की और अपने चंद्र मॉड्यूल के बाहर 17 घंटे से ज्यादा समय बिताया। 7 अगस्त को यह दल वापस धरती पर लौटा।
आपको यह जानकर थोड़ी हैरानी होगी कि मून रोवर का कॉन्सेप्ट अपोलो मिशन से सालों पहले आया था। दरअसल, वर्नर वॉन ब्रौन और उनकी टीम ने 1952-1954 में कोलियर नाम के व्हीकली मैग्जीन की एक सीरीज़ “मैन विल कॉन्कर स्पेस सून!” प्रकाशित किया था। जिसमें चांद की सतह पर छह सप्ताह के प्रवास का वर्णन किया गया था और इतना ही नहीं इस दौरान सप्लाई ले जाने के लिए 10 टन के ट्रैक्टर ट्रेलर को भी इसमें शामिल किया गया था।
अपने चांद के अनुभव पर क्या कहते हैं डेविड स्कॉट–
अपोलो-15 मिशन से वापस लौटने के बाद स्कॉट और उनकी टीम के काम की दुनिया भर में प्रशंसा हुई. डेविड रैंडोल्फ स्कॉट ने अलग-अलग मिशन में अंतरिक्ष में 546 घंटे और 54 मिनट बिताए हैं जो कि तकरीबन 22 दिन के बराबर है. आज उनकी उम्र 90 साल है और स्पेस जुड़ी बातों के लिए उतने ही उत्साही हैं. वह उन पांच लोगों में शामिल हैं जिन्हें जैक्सनविले यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंशियल ग्लोबल सिटीजन अवार्ड मिला है, जो उन्हे हाल ही में यूनिवर्सिटी में दिया गया. इस मौके पर उन्होनें मीडिया को दिए एक बयान में कहा था कि- रोवर के बिना, हम वहां कभी नहीं पहुंच पाते। रोवर बहुत फ्लेक्सिबल था और इसे चलाना आसान था. अगर यह फंस जाए तो इसे उठाना और मुड़ना काफी इजी था।
अगर कार से चांद पर जाएं तो?
एक बार खगोलशास्त्री फ्रेड हॉयल ने कहा था कि, यदि आप 95 किमी/घंटा (60 मील प्रति घंटे) की गति से कार चला सकते हैं, तो अंतरिक्ष में जाने में केवल एक घंटा लगेगा। हालाँकि, चंद्रमा तक पहुँचने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा, क्योंकि यह 4,00,000 किमी (250,000 मील) दूर है – जो कि पृथ्वी की परिधि से लगभग 10 गुना ज्यादा है। यानी कि इसमें दुनिया के चारों तरफ 10 बार गाड़ी चलाने जितना समय लगेगा, कुल मिलाकर आपको यह दूरी तय करने में तकरीबन 6 महीने का समय लगेगा। हालांकि यह तुलनात्मक आंकड़े मात्र हैं और ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है।