शुक्रवार को देश के कई राज्यों में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा धूमधाम के साथ निकाली गई। उड़ीसा, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत कई प्रदेशों में जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भक्तों में भक्ति का उल्लास है रहा। गुजरात के अहमदाबाद में जहां मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने रथ यात्रा निकलने से पहले सोने की झाड़ू से रास्ता साफ किया। वहीं दूसरी ओर उड़ीसा की धार्मिक नगरी पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। बता दें कि कोरोना महामारी की वजह से उड़ीसा में रथ यात्रा पर रोक लगी हुई थी। 2 साल बाद हजारों श्रद्धालुओं ने शुक्रवार को पुरी में भगवान जगन्नाथ के रथ हाथ लगाकर आगे बढ़ाया। इसकी रस्में सुबह मंगला आरती से शुरू हुईं। रथयात्रा में सबसे आगे बलभद्र, बीच में बहन सुभद्रा और आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ था। पुरी के राजा दिव्य सिंह देव ने छोरा पोहरा की परंपरा निभाई और सोने की झाड़ू से रास्ता साफ किया। शाम 6 बजे तक भगवान जगन्नाथ भाई-बहन सहित तीन किलोमीटर दूर मौजूद गुंडिचा मंदिर पहुंच गए। यहां वे 7 दिन रहेंगे।
जगन्नाथ रथ यात्रा का 10 दिनों तक उड़ीसा में चलता है धार्मिक आयोजन–
उड़ीसा राज्य में यह सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के समय हजारों लोग जो बाहर रहते हैं उड़ीसा आ जाते हैं। बता दें कि 1 जुलाई से शुरू हुई रथ यात्रा 12 जुलाई तक चलेगी। जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदू धर्म का विश्व प्रसिद्ध त्योहार है जिसे काफी धूमधाम से मनाया जाता है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित मानी जाती है, जो भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में भाग लेता है वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर जाते हैं। रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से तीन दिव्य रथों पर निकाली जाती हैं। सबसे आगे बलभद्र का रथ, उनके पीछे बहन सुभद्रा और सबसे पीछे जगन्नाथ का रथ होता है।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा निकाले जाने को लेकर चली आ रही धार्मिक मान्यताएं–
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई। तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे। तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र है।