राजधानी दिल्ली में लंबे समय से उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच चली आ रही अधिकारों को लेकर सियासी लड़ाई पर आज देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले पर दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को बड़ी राहत दी है। जिसके बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शक्तियां अब बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए दिल्ली सरकार को वोटिंग-पोस्टिंग (ट्रांसफर-पोस्टिंग) का अधिकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा दिल्ली सरकार की वही शक्तियां हैं, जो दिल्ली विधानसभा को मिली हैं। दिल्ली सरकार को सर्विसेज पर विधायी और कार्यकारी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम 2019 में जस्टिस अशोक भूषण के फैसले से सहमत नहीं है। जस्टिस भूषण ने 2019 में पूरी तरह केंद्र के पक्ष में फैसला दिया था। केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाए कि केंद्र का इतना ज्यादा दखल ना हो कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले। इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा। अगर किसी अफसर को ऐसा लगता है कि उन पर सरकार नियंत्रण नहीं कर सकती है, तो उनकी जिम्मेदारी घटेगी और कामकाज पर इसका असर पड़ेगा। उप-राज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के खाते 239 AA से ये स्पष्ट है कि दिल्ली में तारीख हुई सरकार है और ये लोगों के प्रतिउत्तर है। कोर्ट ने ये भी कहा है कि जस्टिस आनंद के उस फैसले से वो सहमत नहीं हैं कि दिल्ली में अधिकारियों के आवंटन पोस्टिंग की ऑल पावर सेंटर सरकार के पास होने जा रहे हैं। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि NCT एक पूर्ण राज्य नहीं है। ऐसे में पहली राज्य सूची नहीं आती है। एनसीटी दिल्ली के अधिकार अन्य राज्यों की तुलना में कम हैं। सीजेआई ने कहा कि एनसीटी दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है, फिर भी इसे सूची 2 और 3 के तहत कानून बनाने का अधिकार है। विधानसभा को लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां दी गई हैं। CJI ने कहा कि यदि लोकतांत्रिक रूप से तारीख हुई सरकार को अधिकारियों का नियंत्रण करने का अधिकार नहीं दिया जाता है, तो अधिष्ठाता चेन का सिद्धांत बेइमानी हो जाएगा। यदि सत्ता को नियंत्रण करने की शक्ति नहीं दी जाती है, तो अधिकारी के प्रति प्रतिदेह नहीं हो सकते हैं। सुनवाई में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने ये भी कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने के लिए केंद्र की मांगों से रिपोर्टिंग की जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि यह मामला सिर्फ 70 पर नियंत्रण का है। सेवाओं पर किसका अधिकार है, ये बहुमत का निर्णय है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की याचिका ने अपना फैसला लिखना शुरू किया। आखिरी बार कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। यहां बता दें कि दिल्ली विधानसभा के पास पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि के मामले में अधिकार नहीं है। यानी इन मामलों को छोड़कर अन्य विभागों के अधिकारियों पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण हासिल होगा।पांच जजों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल रहे। पीठ ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला दिया।