अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नई करवट लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साहसिक कूटनीतिक पहल का निर्णय लिया है। अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव और तीखे बयानों के बीच अब प्रधानमंत्री इसी महीने चीन यात्रा पर जाएंगे, जहाँ उनकी मुलाकात राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तय मानी जा रही है। यह दौरा न केवल एशिया की दो बड़ी ताकतों के बीच संबंधों की दिशा तय करेगा, बल्कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक अप्रत्यक्ष लेकिन स्पष्ट संदेश भी देगा कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी एक ध्रुव पर आश्रित नहीं है। मोदी सरकार के इस कदम को वैश्विक संतुलन की राजनीति में एक चौंकाने वाली लेकिन रणनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के तियानजिन शहर का दौरा करेंगे। यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि यह 2020 की गलवान घाटी में भारत-चीन के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद उनकी पहली चीन यात्रा होगी। उस टकराव में दोनों देशों के सैनिकों की मौत हुई थी और तभी से दोनों देशों के संबंधों में भारी तनाव बना हुआ था। ऐसे में यह दौरा न सिर्फ कूटनीतिक नजरिए से अहम है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच बातचीत की एक नई शुरुआत का प्रतीक भी माना जा रहा है।
पीएम मोदी की यह यात्रा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चलेगी और इसमें वो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित SCO के अन्य सदस्य देशों के नेताओं से भी मिल सकते हैं। इस दौरान क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार, ऊर्जा, और आपसी सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। यात्रा से पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी चीन का दौरा किया था और सीमावर्ती तनाव, व्यापार प्रतिबंधों, और उर्वरक जैसी जरूरी सामग्रियों की आपूर्ति पर बातचीत की थी।
जयशंकर ने यह भी कहा था कि पिछले नौ महीनों में भारत-चीन संबंधों में थोड़ी प्रगति हुई है, लेकिन जब तक सीमा पर शांति नहीं होगी, तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते। इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी SCO के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया था लेकिन उन्होंने उस साझा बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था जिसमें कश्मीर में हुए हालिया आतंकी हमले का जिक्र नहीं था। मोदी की इस यात्रा से उम्मीद की जा रही है कि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक बातचीत का सिलसिला फिर से गति पकड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस मंच का इस्तेमाल सही तरीके से किया गया, तो सीमा विवाद को हल करने, व्यापारिक सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।
साथ ही यह यात्रा यह भी दर्शाती है कि भारत, अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए, बातचीत के जरिए समस्याओं को सुलझाने के लिए तैयार है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह दौरा केवल एक औपचारिकता भर रह जाता है या वास्तव में दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ लेकर आता है।