देश की सर्वोच्च अदालत ने आज महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि हम मंत्रियों, नेताओं और विधायकों के बेतुके बयानों पर रोक नहीं लगाएंगे। इसके साथ सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि अगर कोई मंत्री फिजूल बयान बाजी करते हैं तो इसकी जिम्मेदारी स्वयं उसी की होगी। इसमें सरकार का कोई दोष नहीं होगा। बता दें कि यह मामला करीब 7 साल पहले 2016 में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान से शुरू हुआ था। तभी से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था। मंगलवार, 3 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब नेताओं को गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी को लेकर स्वयं ही तय करना होगा कि हमें अपनी भाषा कैसे रखनी है। आए दिन आपने देखा होगा देश में नेता अमर्यादित शब्दों और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं। नेताओं के इस बेतुके बयानों का असर सरकारों पर भी पड़ता है। हालांकि बाद में नेता यह कहते हुए भी पाए जाते हैं कि, जुबान फिसल गई थी या मेरा बयान तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों के बेतुका बयान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बोलने की आजादी पर रोक नहीं लगा सकते हैं। आपराधिक मुकदमों पर मंत्रियों और बड़े पद पर बैठे लोगों की बेतुकी बयानबाजी पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट की संविधान बेंच ने कहा कि मंत्री का बयान सरकार का बयान नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि बोलने की आजादी हर किसी नागरिक को हासिल है।
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उस पर संविधान के परे जाकर रोक नहीं लगाई जा सकती। बेंच ने कहा कि अगर मंत्री के बयान से केस पर असर पड़ा हो तो कानून का सहारा लिया जा सकता है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने कहा कि इसके लिए पहले ही संविधान के आर्टिकल 19(2) में जरूरी प्रावधान मौजूद हैं। पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मंत्रियों के बयानों को सरकार का बयान नहीं कह सकते हैं। जस्टिस एस अब्दुल नजीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने कहा कि सरकार या उसके मामलों से संबंधित किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयानों को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। एक अलग फैसले में, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत जरूरी अधिकार है, ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके, यह अभद्र भाषा में नहीं बदल सकता। बता दें कि नेताओं के लिए बयानबाजी की सीमा तय करने का मामला 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान की बयानबाजी से शुरू हुआ था। आजम ने जुलाई, 2016 के बुलंदशहर गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था। इसके बाद ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 15 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था।