संसद पर हमले के 20 साल, जांबाज सुरक्षाबलों ने अपना बलिदान देकर लोकतंत्र की लाज और मंत्रियों सांसदों की बचाई थी जान - Daily Lok Manch PM Modi USA Visit New York Yoga Day
January 16, 2025
Daily Lok Manch
राष्ट्रीय

संसद पर हमले के 20 साल, जांबाज सुरक्षाबलों ने अपना बलिदान देकर लोकतंत्र की लाज और मंत्रियों सांसदों की बचाई थी जान

आज एक ऐसी तारीख है जो ठीक 20 वर्ष पहले लोकतंत्र के मंदिर और सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली बिल्डिंग संसद भवन पर हमले की याद दिलाती है। सफेद रंग की एंबेसडर कार से आए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने चंद मिनटों में ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार से पूरे संसद भवन को हिला कर रख दिया। टीवी पर हमले की खबर चलते ही पूरा देश सकते में आ गया था। हमलावर अपने मंसूबों पर सफल हो पाते उससे पहले ही हमारे मुस्तैद जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर सभी को ढेर कर दिया और लोकतंत्र के मंदिर पर आंच नहीं आने दी। उस हमले के गवाह बने केंद्रीय मंत्री और सांसद अभी भी उस पार्लियामेंट हमले को भूल नहीं पाए हैं।‌ आज 13 दिसंबर है, आइए आपको ठीक 20 वर्ष पीछे लिए चलते हैं। साल 2001 संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी। उस दिन सदन की कार्यवाही अभी शुरू ही हुई थी कि विपक्ष के हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्षी नेता सोनिया गांधी अपने आवास की ओर प्रस्थान कर चुके थे लेकिन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत देश के तमाम बड़े नेता उस वक्त संसद में ही थे। तभी सुबह 11 बजकर 28 मिनट के करीब एक सफेद एम्बेसडर कार संसद भवन परिसर में गेट नंबर 12 से दाखिल हुई। कार के ऊपर लाल बत्ती लगी थी और गृह मंत्रालय का स्टीकर लगा था। संसद परिसर में कार की स्पीड तेज होने पर संसद भवन की सुरक्षा में तैनात गार्ड जगदीश यादव को कुछ शक हुआ। उधर, 11 बजकर 29 मिनट पर गेट नंबर 11 पर तत्कालीन उप राष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी उनके निकलने का इंतजार कर रहे थे। तभी वह कार उपराष्ट्रपति की कार के काफिले की तरफ बढ़ी। सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव तभी उस कार के पीछे दौड़ते-भागते आए। वो कार को रुकने का इशारा कर रहे थे लेकिन कार चालक अपनी धुन में था। जगदीश यादव को दौड़ता भागता देख उप राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी अलर्ट हो गए। असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीत राम, नानक चंद और श्याम सिंह ने उस सफेद कार को रोकने की कोशिश की लेकिन कार नहीं रुकी और उप राष्ट्रपति के काफिले की कार को टक्कर मार दी। 


आतंकी अपनी पूरी तैयारी के साथ आए थे लेकिन सुरक्षाबलों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया–

तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत करीब सौ से ज्यादा सांसद संसद भवन की मेन बिल्डिंग में ही मौजूद थे। गोलीबारी कर रहे आतंकवादियों का मंसूबा था कि उस बिल्डिंग में घुसकर सभी सांसदों और मंत्रियों को बंधक बना लिया जाए, लेकिन वो अपने इस नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए। गेट नंबर एक पर जख्मी हुए आतंकवादी के पास बैग में विस्फोटक था, उसने खुद को रिमोट से उड़ा लिया। इस बीच संसद भवन परिसर में दोनों तरफ से गोलियां चल रही थी। आतंकियों के पास एके-47 रायफल थी। पांचों की पीठ पर हथियारों से लैस बैग टंगे थे। संसद परिसर के सभी गेट बंद कर दिए गए। तभी उनमें से एक आतंकवादी संसद भवन के गेट नंबर एक की तरफ दौड़ता है। वह संसद के अंदर घुसना चाहता था ताकि सांसदों को निशाना बना सके लेकिन वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उसे गोली मार दी। इस बीच सेना और एनएसजी को संसद पर हमले की सूचना मिल चुकी थी। 11.55 बजे के आसपास गेट नंबर एक पर दूसरे आतंकी को भी सुरक्षाकर्मियों ने ढेर कर दिया। आतंकी चारों तरफ से घिर चुके थे, उन्हें दो साथियों के मारे जाने की खबर लग चुकी थी, इसलिए वो किसी भी कीमत पर गेट नंबर 9 से संसद में घुसना चाहते थे। वो गोलियां बरसाते हुए गेट नंबर 9 की तरफ बढ़े लेकिन 12 बजकर 5 मिनट के आसपास सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें घेर लिया। तभी आतंकी उन पर हथगोले फेंकने लगे। सुरक्षाकर्मियों ने एक-एक कर तीनों को भी मार गिराया। करीब 45 मिनट तक आतंकवादियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच फायरिंग होती रही थी। इस हमले में आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए और 16 जवान इस मुठभेड़ में घायल हुए थे। सभी पांचों आतंकी तो मारे गए लेकिन इसके पीछे मास्टर माइंड कोई और था। हमले की साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने 15 दिसंबर 2001 को गिरफ्तार किया। संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की थी। अफजल गुरु की दया याचिका को 3 फरवरी, 2013 को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया और 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहा‌ड़ जेल में फांसी दी गई। आज संसद पर हमले की 20वीं बरसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी समेत तमाम विपक्षी नेताओं ने शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी है। 

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