देश की राजनीति में दिन सोमवार, 21 जुलाई एक अप्रत्याशित भूचाल तब आया, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ ने इस्तीफा का कारण अपना खराब स्वास्थ्य बताया और उपराष्ट्रपति पद छोड़ दिया। लेकिन विपक्ष यह कारण मानने के लिए तैयार नहीं है। 74 साल के धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि उसी दिन संसद का मानसून सत्र भी शुरू हुआ था। यह सिर्फ एक औपचारिक विदाई नहीं थी, बल्कि सत्ता के शिखर पर बैठी उस संवैधानिक कुर्सी का खाली हो जाना था, जो पूरे देश में संतुलन और गरिमा का प्रतीक मानी जाती है। धनखड़ का यह फैसला न तो पहले से संकेतित था, न ही इसकी कोई राजनीतिक चर्चा सार्वजनिक रूप से हुई थी । यही बात इस घटनाक्रम को एक सस्पेंस थ्रिलर बना गई । सत्ता पक्ष में इसे लेकर गहरा असमंजस है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता जहां चुप्पी साधे हुए हैं, वहीं कई मंत्रियों ने इसे ‘निजी कारण’ कहकर टालने की कोशिश की। लेकिन पर्दे के पीछे क्या कोई रणनीतिक बदलाव हो रहा है? क्या यह राष्ट्रपति भवन और संसद के बीच किसी बड़ी बदलाव की तैयारी है? ये सवाल अब चर्चा में हैं।वहीं विपक्ष पूरी तरह से हैरान और परेशान है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने सवाल खड़े कर दिए हैं । क्या कोई दबाव था? क्या धनखड़ को कुछ मजबूर किया गया?” या फिर “क्या यह आने वाले चुनाव से पहले किसी नए समीकरण की बुनियाद है। राजनीतिक गलियारों में एक गूंज सुनाई दे रही है । ‘धनखड़ गए तो कौन आएगा?’ राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, ये तीनों संवैधानिक स्तंभ देश के लोकतंत्र की रीढ़ हैं, और जब इनमें से कोई अचानक हटता है, तो सिर्फ कुर्सी नहीं, पूरा संतुलन डगमगा जाता है। इस घटनाक्रम ने सत्ता के गलियारों में नई हलचल और मीडिया में एक तूफान खड़ा कर दिया है। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर पीएम मोदी ने एक्स पर टिवीट कर लिखा कि श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। अब सभी की निगाहें सिर्फ एक ओर हैं। अगला उपराष्ट्रपति कौन? और क्यों इतनी जल्दी कुर्सी खाली हुई।देश में 72 साल के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में धनखड़ पहले ऐसे राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति रहे, जिनके खिलाफ दिसंबर 2024 महाभियोग प्रस्ताव लाया था। जो बाद में तकनीकी कारणों से खारिज हो गया था। विपक्ष धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाता रहा था। विपक्ष का दावा था कि वह सिर्फ विपक्ष की आवाज व उनके सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों को दबाते हैं।

धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल, विपक्ष भी हैरान–
मानसून सत्र के पहले ही दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कैबिनेट का सहयोग के लिए धन्यवाद भी किया। धनखड़ के इस्तीफे के बाद विपक्ष ने मोदी सरकार से सवाल करना शुरू कर दिया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा- इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी। इस्तीफा के बाद धनखड़ ने खराब स्वास्थ्य का कारण बताया लेकिन विपक्ष संतुष्ट नहीं हो रहा है। सोमवार रात देश की राजनीति उस वक्त चौंक गई जब उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। इस अप्रत्याशित फैसले के बाद विपक्षी दलों में हलचल मच गई है। कई नेताओं ने इसे “अकल्पनीय और चौंकाने वाला कदम” बताते हुए सरकार से स्पष्टीकरण की मांग की है। इस्तीफे की वजहों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है, जबकि राष्ट्रपति भवन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मची है। विपक्षी दलों ने इसे “संविधानिक संकट की आहट” बताते हुए गंभीर सवाल उठाए हैं। कई नेताओं ने मीडिया से बातचीत में नाराजगी और आशंका जाहिर की है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने कहा यह सिर्फ इस्तीफा नहीं है, यह किसी बड़े दबाव या असहमति का संकेत है। प्रधानमंत्री को देश को बताना चाहिए कि आखिर हुआ क्या है?” पश्चिम बंगाल की मुखमंत्री ममता बनर्जी ने कहा अगर उपराष्ट्रपति खुद को असहज महसूस करते हैं तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह बेहद चिंताजनक है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल
क्या अब संवैधानिक पद भी सुरक्षित नहीं हैं? यह इस्तीफा अपने आप में एक राजनीतिक संदेश है।राहुल गांधी ने कहा कि धनखड़ जी का इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य का कारण नहीं हो सकता। यह लोकतंत्र की रीढ़ को हिलाने वाली घटना है। प्रधानमंत्री की चुप्पी इस पर और गहरा संदेह खड़ा करती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अचानक इस्तीफा चौंकाने वाला है। यह सामान्य प्रक्रिया नहीं है। ‘डाल में कुछ काला’ है, जिसे सरकार छिपा रही है। जयराम रमेश ने कहा कि व्यक्तिगत कारण बताकर इतना बड़ा संवैधानिक फैसला नहीं लिया जाता। यह देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला है। राजस्थान पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धनखड़ जी पर पार्टी के भीतर से दबाव था। ये इस्तीफा उनकी निजी इच्छा नहीं, राजनीतिक मजबूरी थी। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि क्या धनखड़ जी की न्यायपालिका के समर्थन वाली टिप्पणियां भाजपा को असहज कर रही थीं? यही इस्तीफे का असली कारण हो सकता है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि इतने ऊंचे संवैधानिक पद से यूं अचानक हट जाना गंभीर सवाल खड़े करता है। यह भाजपा के भीतर मतभेद का संकेत है। तेजस्वी यादव ने कहा कि देश को जानने का हक है कि उपराष्ट्रपति ने अचानक पद क्यों छोड़ा। सिर्फ स्वास्थ्य बताकर नहीं टाला जा सकता। केसी वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को पारदर्शिता दिखानी चाहिए। संवैधानिक पद से इस्तीफा सामान्य घटना नहीं होती। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि धनखड़ जी का इस्तीफा पर्दे के पीछे चल रहे किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम का संकेत है। सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि संसद और जनता को ये जानने का हक है कि आखिर इस्तीफे की असली वजह क्या है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि संवैधानिक मर्यादाएं खतरे में हैं। अगर उपराष्ट्रपति जैसे पद से व्यक्ति इस्तीफा देता है, तो यह सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा श्री धनखड़ का इस्तीफा यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वर्तमान शासन में स्वतंत्र संस्थाएं बची हैं? एनसीपी नेता ने शरद पवार ने कहा कि संवैधानिक पदों की गरिमा बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। यह इस्तीफा दर्शाता है कि भीतर ही भीतर बहुत कुछ गलत हो रहा है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा देश के लोकतंत्र की रीढ़ हिल रही है। अब जनता को सच्चाई से रूबरू कराया जाना चाहिए। सीपीआई नेता डी राजा ने भी बयान जारी कर कहा कि यह इस्तीफा दिखाता है कि संवैधानिक पदधारी भी अब स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने धनखड़ को देशभक्त बताया। उन्होंने कहा- धनखड़ ने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, इसलिए इसे स्वीकार किया जाना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। इस पर आगे कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए। सिब्बल ने कहा- मैं व्यक्तिगत रूप से उनके इस्तीफे से खुश नहीं हूं, क्योंकि मैं अब जब संसद जाऊंगा तो उनसे नहीं मिलूंगा। निजीतौर पर मुझे अच्छा नहीं लगा।
उपराष्ट्रपति का खाली पद संविधान के अनुसार छह महीने के भीतर भरना आवश्यक–
उपराष्ट्रपति पद के लिए संविधान के अनुसार रिक्त पद को छह महीने के भीतर भरना आवश्यक है लेकिन उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसी कोई निश्चित समय-सीमा नहीं है। केवल यह आवश्यक है कि पद रिक्त होने के बाद यथाशीघ्र चुनाव कराए जाएं। चुनाव आयोग कार्यक्रम की घोषणा करेगा। यह चुनाव राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत होता है। परंपरा के अनुसार, संसद के किसी भी सदन के महासचिव को बारी-बारी से निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया जाता है। ये चुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि जगदीप धनखड़ ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है, लेकिन नया उपराष्ट्रपति पदभार ग्रहण करने की तिथि से पूरे पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगा न कि केवल धनखड़ का शेष कार्यकाल। उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों और मनोनीत सदस्यों से मिलकर बने एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति चुनाव के विपरीत, इसमें राज्य विधानसभाएं भाग नहीं लेतीं। यह चुनाव संसद भवन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार गुप्त मतदान द्वारा सिंगल ट्रांसफरेबल वोट के माध्यम से किया जाता है। प्रत्येक सांसद उम्मीदवारों को वरीयता क्रम के हिसाब से वोट डालता है। निर्वाचित होने के लिए, किसी उम्मीदवार को न्यूनतम आवश्यक मतों की संख्या प्राप्त करनी होती है, जिसे कोटा कहा जाता है। इसकी गणना कुल वैध मतों की संख्या को दो से विभाजित करके और एक जोड़कर की जाती है। यदि पहले चरण में कोई भी उम्मीदवार कोटा पार नहीं करता है, तो सबसे कम प्रथम वरीयता वाले मत पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है, और उनके मत द्वितीय वरीयता के आधार पर शेष उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि एक उम्मीदवार कोटा पार नहीं कर लेता। उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए, कम से कम 35 वर्ष का होना चाहिए, राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के योग्य होना चाहिए और किसी भी संसदीय क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। उन्हें राष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री जैसे पदों को छोड़कर, केंद्र या राज्य सरकारों के अधीन किसी भी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। वहीं निर्वाचन आयोग ने देश के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की तैयारी तेज कर दी है। आयोग ने राज्यसभा महासचिव पीसी मोदी को इसके लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त कर दिया। इसके साथ ही दो सहायक निर्वाचन अधिकारियों की भी नियुक्ति की गई है। निर्वाचन आयोग ने यह नियुक्तियां राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव नियम 1974 के तहत की है और चुनाव कार्यक्रम की घोषणा भी अगले कुछ दिन में कर दी जाएगी।