आज पूरे देश में शरद पूर्णिमा का उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। पूरे साल भर में आज की रात जिसमें सबसे ज्यादा चंद्रमा अपनी चमक दिखाता है। शरद पूर्णिमा की रात को देखने के लिए हमारे देश में सदियों से परंपरा चली आ रही है। शरद पूर्णिमा हर साल आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस पर्व का महत्व चंद्रमा की रोशनी के साथ जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुंद्र मंथन के दौरान इसी दिन माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु संग माता लक्ष्मी गरुड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण करती हैं। ऐसे में जो भी आज व्रत रखते हैं उन भक्तों पर माता अपनी कृपा बरसाती हैं। इसके लिए व्रत धारक इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। ऐसे में शरद पूर्णिमा पर पूजा, पाठ, आरती आदि विधियों के साथ व्रत कथा को भी पढ़ने या सुनने का विधान है। कहते हैं इनका पालन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को आती हैं। मान्यता है कि सालभर में सिर्फ इसी दिन चांद 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। शरद पूर्णिमा की रात को चांद की किरणों से अमृत बरसता है। इसी वजह से इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रातभर चांदनी में रखने की परंपरा है। इसलिए इस दिन खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखा जाए और अगले दिन पूरे परिवार में बांट दिया जाए तो इससे किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता है। साथ ही मिट्टी के कलश या करवे में पानी भरकर छत पर रख दें और अगले दिन इसे पानी में मिलाकर स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात में पूरी रात जागकर मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करने का खास महत्व बताया गया है। शरद पूर्णिमा के दिन आपने बहुत से लोगों को छत पर खीर रखते हुए देखा होगा। कहा जाता है इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। ऐसे में जो भी इस रात चंद्रमा के नीचे रखकर खीर खाता है उसे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है। कई पौराणिक कथाओं में भी शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने के प्रचलन के बारे में बताया गया है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी संपूर्ण सोलह कलाओं के साथ निकलता है, इसलिए शरद पूर्णिमा के दिन भगवान चंद्र देव की विशेष उपासना का विधान है। इस दिन महिलाएं उपवास रख अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी के पूजन का दिन माना जाता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की सोलह कलाओं अमृत, मनदा (विचार) पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता), शाशनी (तेज), ध्रुति (विद्या), चंद्रिका (शांति), ज्योत्सना (प्रकाश), कांति (कीर्ति), पुष्टि (स्वस्थता), तुष्टि(इच्छापूर्ति), पूर्णामृत (सुख) प्रीति (प्रेम), पुष्प (सौंदर्य), ज्योत्सना (प्रकाश) श्री (धन) अंगदा (स्थायित्व) के साथ निकलता है। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण सभी गोपियों संग वृंदावन में महारास लीला रचाते हैं। इस कारण से शरद पूर्णिमा पर वृंदावन में विशेष आयोजन होता है। इसलिए इस महीने की पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
पौराणिक मान्यतओं के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है। इस कारण से इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि आज की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन चांद की चांदनी पृथ्वी पर अमृत के समान होती है और चंद्रमा पृथ्वी के काफी करीब आ जाता है। जिससे चांद का आकार बहुत बढ़ा दिखाई देता है। इसके अलावा शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष आराधना की जाती है। बता दें कि आज ही के दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण महाकाव्य रामायण की रचना की गई थी। शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा सोलह कलाओं में चमकता है और पूरी रात अपनी धवल चांदनी से पृथ्वी को रोशन करता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की शीतल चांदनी के साथ ही अमृत वर्षा होती है। इस तिथि को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं। शारदीय नवरात्रों के समाप्त होने पर शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और धर्म-कर्म के काम में लगे लोगों को आशीर्वाद देती हैं
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है खीर—
इस दिन खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखा जाए और अगले दिन पूरे परिवार में बांट दिया जाए तो इससे किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता है। साथ ही मिट्टी के कलश या करवे में पानी भरकर छत पर रख दें और अगले दिन इसे पानी में मिलाकर स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। शरद पूर्णिमा की पूरी रात जागकर मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करने का खास महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यतओं के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है। इस कारण से इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन आपने बहुत से लोगों को छत पर खीर रखते हुए देखा होगा। कहा जाता है इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। ऐसे में जो भी इस रात चंद्रमा के नीचे रखकर खीर खाता है उसे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है। कई पौराणिक कथाओं में भी शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने के प्रचलन के बारे में बताया गया है। मान्यता है कि 3-4 घंटे तक खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है।
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