देश ने खो दिया एक और महान सिंगर, भूपेंद्र सिंह की मधुर आवाज का चला जादू, उनकी ये गजलें खूब हुई लोकप्रिय - Daily Lok Manch PM Modi USA Visit New York Yoga Day
July 4, 2025
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देश ने खो दिया एक और महान सिंगर, भूपेंद्र सिंह की मधुर आवाज का चला जादू, उनकी ये गजलें खूब हुई लोकप्रिय

(Famous Bollywood singer Bhupendra Singh passes away) : बॉलीवुड में एक और बड़ी क्षति हुई। अपनी मखमली और अलग आवाज के लिए पूरे देश भर में पहचान बनाने वाले मशहूर सिंगर भूपेंद्र सिंह ने मुंबई के एक अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया। जैसे ही यह खबर बॉलीवुड और उनके लाखों प्रशंसकों को मालूम पड़ी शोक की लहर छा गई। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने उनके गीत और गजल को गुनगुनाते हुए शेयर करते हुए श्रद्धांजलि दी। भूपेंद्र सिंह के निधन की जानकारी उनकी पत्नी मिताली सिंह ने दी। बता दें कि कई दिनों से मशहूर गजल गायक भूपेंद्र सिंह यूरिनरी इनफेक्शन बीमारी से पीड़ित थे। उन्हें कोलन (बड़ी आत) संबंधी भी समस्याएं थी। आज शाम 7:30 बजे मुंबई के क्रिटी केयर अस्पताल में 82 साल की आयु में उनका निधन हो गया। कई फिल्मों में भूपेंद्र सिंह ने अपनी आवाज का जादू बिखेरा। लेकिन उनकी पहचान गजल गायकी के रूप में देश और दुनिया में बनी। 80 के दशक में पूरे देश भर में उनकी आवाज का जादू खूब सर चढ़कर बोला। उनकी गाई हुईं गजलों करोड़ों लोगों ने खूब गुनगुनाया। भूपेंद्र सिंह की कई गजलें और गीत पूरे देश भर में खूब लोकप्रिय हुए। उन्होंने गाया भी है, ‘मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे।’ यह गीत उन पर बिल्कुल फिट बैठता है। वह बेहतरीन गजलों और अर्थपूर्ण गीतों के लिए जाने जाते हैं। ‘किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है’, ‘होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा’ ‘दिल ढूंढ़ता है फिर वही’, ‘एक अकेला इस शहर’ में जैसे नज्मों को भला कौन भूल सकता है? भूपेंद्र के गाए गीतों ने संगीत प्रेमियों के दिल पर एक अलग छाप छोड़ी है।

भूपेंद्र का जन्म 6 फरवरी, 1940 को अमृतसर के पंजाब में हुआ था। उनके पिता प्रोफेसर नत्था सिंह पंजाबी सिख थे। सबसे पहले भूपेंद्र को संगीत की शिक्षा नत्था सिहं ने ही प्रदान की। नत्था बेहतरीन संगीतकार थे, लेकिन मौसिकी सिखाने में सख्ती बरतते थे, जिस कारण भूपेंद्र को संगीत से नफरत हो गई, लेकिन धीरे-धीरे उनके मन में संगीत के प्रति प्रेम पैदा होने लगा। करियर की शुरुआत में भूपेंद्र ने ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुति दी। उन्होंने वायलिन और गिटार बजाना भी सीखा। मदन मोहन ने भूपेंद्र को फिल्म ‘हकीकत’ में मोहम्मद रफी के साथ ‘होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा’ गाने का मौका दिया। यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ, लेकिन भूपेंद्र को इससे कोई खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद भूपेंद्र ने स्पेनिश गिटार और ड्रम के सहारे कुछ गजलें पेश कीं। साल 1978 में रिलीज ‘वो जो शहर था’ से उन्हें प्रसिद्धि मिली। इसके गीत गीतकार गुलजार ने लिखे थे। भूपेंद्र सिंह के निधन पर बॉलीवुड समेत उनके प्रशंसकों में शोक की लहर है। भूपेंद्र ने 1980 के दशक में बांग्ला गायिका मिताली मुखर्जी से शादी रचा ली। शादी के बाद उन्होंने पाश्र्व गायन से किनारा कर लिया। दोनों ने कई कार्यक्रम एक साथ प्रस्तुत किए और भूपेंद्र-मिताली की जोड़ी ख्रूब मशहूर हो गई। दोनों ने खूब नाम और शोहरत कमाया। इस दंपति की कोई संतान नहीं है। भूपेंद्र सिंह के गाए बेहतरीन नगमें, जैसे ‘नाम गुम जाएगा’, ‘करोगे याद तो’, ‘मीठे बोल बोले’ ‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता’, ‘दरो-दीवार पे हसरत से नजर करते हैं’, ‘खुश रहो अहले-वतन हम तो सफर करते हैं’ आदि आज भी गुनगुनाए जाते हैं। भूपेंद्र ने ‘ड्रीम सेलर्स’, ‘आरजू’, ‘चांदनी रात’, ‘गुलमोहर’ और ‘मेरी आवाज ही पहचान है’ जैसे अलबम में गीत गाए।

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