देश में चुनाव कराने वाला सबसे बड़ी संस्था मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अब केंद्र सरकार नहीं कर सकेगी। विपक्षी पार्टी वर्षों से केंद्र सरकारों पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति को लेकर निशाना साधती रही हैं। यही नहीं विपक्ष चुनाव आयोग पर केंद्र के साथ मिलीभगत का भी आरोप लगाती रही हैं। गुरुवार को देश की शीर्ष अदालत ने मुख्य चुनाव आयोग आयुक्त की नियुक्ति को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। गुरुवार, 2 मार्च को पांच जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अब पीएम, सीजेआई और लोकसभा में नेता विपक्ष की तीन सदस्यों वाली कमेटी की सिफारिश पर होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दो फैसले दिए और दोनों सर्वसम्मत फैसले थे। जस्टिस अजय रस्तोगी ने अपने अलग फैसले में कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया मुख्य चुनाव आयुक्त के महाभियोग की तरह ही होगी।कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। पहले सिर्फ केंद्र सरकार इनका चयन करती थी। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह चयन प्रक्रिया सीबीआई डायरेक्टर की तर्ज पर होनी चाहिए। जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।