फरीदाबाद । तिरखा कॉलोनी बल्लभगढ़ में अखिल भारतीय मानव कल्याण ट्रस्ट के संस्थापक डॉ ह्रदयेश कुमार ने बगलामुखी जयंती का महत्त्व बताते हुए विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि वैशाख शुक्ल नवमी तिथि पर देवी बगलामुखी प्रकट हुई थीं। ये देवी दस महाविद्याओं में से एक हैं। कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर से हुई है।
मां बगलामुखी तंत्र-मंत्र की प्रमुख देवी हैं। मान्यता है कि विशेष कार्यों में सफलता पाने के लिए इनकी पूजा की जाती है। इन्हें शत्रुनाशिनी भी कहा जाता है। शत्रुओं से बचने के लिए और कोर्ट-कचहरी से संबंधित मामलों में सफलता पाने के लिए देवी बगलामुखी की आराधना करना श्रेष्ठ माना गया है। धर्म ग्रंथों मे इनका रंग पीला बताया गया है और इन्हें पीले रंग की वस्तुएं ही विशेष रूप से चढ़ाई जाती हैं इसलिए इनका एक नाम पीतांबरा भी है।
बगलामुखी जयंती की सुबह सूर्योदय के समय उठकर स्नान करें और पीले रंग की धोती पहनें। जिस स्थान पर पूजा करनी है वहां गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें। इसके बाद एक चौकी (बाजोट) रखकर मां बगलामुखी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद हाथ में पीले चावल, हल्दी, पीले फूल और दक्षिणा लेकर माता बगलामुखी व्रत का संकल्प करें। देवी को खड़ी हल्दी की माला पहनाएं। पीले फल और पीले फूल चढ़ाएं। पीले रंग की चुनरी अर्पित करें। धूप, दीप और अगरबत्ती लगाएं। फिर पीली मिठाई का प्रसाद चढ़ाएं। इस दिन शाम को कुछ भी खाए-पिएं नहीं। रात्रि में फलाहार कर सकते हैं। रात में पूजा स्थान के समीप बैठकर देवी बगलामुखी के मंत्रों का जाप करें। अगले दिन पूजा करने के बाद ही भोजन करें।
देवी बगलामुखी को पीला रंग प्रिय है। धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये रंग पवित्रता, आरोग्य और उत्साह का प्रतीक माना जाता है। देवी बगलामुखी की पूजा में इसी रंग की चीजों का उपयोग किया जाता है। रोग और महामारी से बचने के लिए हल्दी और केसर से देवी बगलामुखी की विशेष पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की दश महाविद्याओं में ये आठवीं हैं। खासतौर से इनकी पूजा से दुश्मन, रोग और कर्ज से परेशान लोगों को लाभ मिलता है। वैसे तो देश में इनके अनेक मंदिर हैं लेकिन मध्य प्रदेश दतिया स्थित पीतांबरा पीठ और उज्जैन के निकट नलखेड़ा स्थित मंदिर प्रमुख माने जाते हैं।
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