लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाने का रास्ता अब साफ हो गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार 12 दिसंबर को मोदी सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना है। मोदी सरकार अगले हफ्ते इस बिल को संसद में पेश कर सकती है। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, मोदी कैबिनेट ने बिल को मंजूरी दे दी है और वो बिल पर आम सहमति बनाना चाहती है। बिल पर व्यापक चर्चा के लिए सरकार इसे संयुक्त संसदीय समिति या जेपीसी के पास भेज सकती है। इस साल सितंबर में कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल को मंजूरी दी थी, जिसमें लोकसभा, विधानसभा, शहरी निकाय और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव था। ये सभी चुनाव 100 दिन की समय-सीमा के भीतर कराए जाने थे। इस पहल पर विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति ने मार्च में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी। इससे पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि केंद्र सरकार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल पर आम सहमति बनानी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह मुद्दा राजनीतिक हितों से परे है और पूरे देश की सेवा करता है।
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, “केंद्र सरकार को आम सहमति बनानी होगी। यह मुद्दा किसी पार्टी के हित में नहीं बल्कि पूरे देश के हित में है। यह एक बड़ा बदलाव लाएगा, यह मेरी राय नहीं बल्कि अर्थशास्त्रियों की राय है, जो मानते हैं कि इसके लागू होने के बाद देश की जीडीपी में 1 से लेकर 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी।पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट में इन सिफारिशों को रेखांकित किया गया था। मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस निर्णय की प्रशंसा करते हुए इसे भारत के लोकतंत्र को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया था।
क्या है एक राष्ट्र एक चुनाव के लाभ?
सरकार का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से धन और समय की बचत होगी।
प्रशासनिक व्यवस्था ठीक रहने के साथ सुरक्षा बलों भी तनाव नहीं होगा।
चुनाव प्रचार में ज्यादा समय मिलने के साथ विकास कार्यों भी ज्यादा हो सकेंगे।
वहीं, चुनावी ड्यूटी के चलते सरकारी कार्यों में भी दिक्कतें आती हैं।