देवभूमि में आज यहां का लोक पर्व हरेला धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। वातावरण में चारों ओर हरियाली छाई है। इस पर्व को मनाने के लिए कुमाऊं, गढ़वाल के लोग कई दिनों से तैयारी करते हैं। उत्तराखंड की धामी सरकार ने हरेला पर्व पर सोमवार 17 जुलाई को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है। सबसे खास बात यह है कि हरेला पर्व के साथ ही उत्तराखंड में सावन महीने की शुरुआत भी हो गई है। गौरतलब है कि देशभर में सावन माह की शुरुआत चार जुलाई को हो गई है। हरेला प्रकृति से जुड़ा पर्व है। इस दिन पहाड़ में रहने वाले किसान हरेला के पौधे को काटकर देवी-देवताओं को समर्पित करते हैं और अच्छी फसल की कामना अपने ईष्ट देवता से करते हैं। हरेला पर्व शुरू होने से नौ दिन पहले लोग घर के मंदिर या अन्य साफ सुधरी जगह पर इसे बोते हैं। इसके लिए साफ जगह से मिट्टी निकाली जाती है और इसे सुखाया जाता है।
बाद में इसे छाना जाता है और टोकरी में जमा किया जाता है। मक्का, धान, तिल, भट्ट, उड़द, जौ और गहत जैसे पांच से सात अनाज डालकर सींचा जाता है। इसके बाद नौ दिनों तक पूरी देखभाल की जाती है। 10वें दिन इसे काटा जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। इस दिन घरों में कई तरह के पहाड़ी पकवान बनाए जाते हैं। बता दें। हरेला सावन के पहले संक्राद के रूप में मनाया जाता है। कुमाऊं में इसे हरियाली व गढ़वाल क्षेत्र में मोल संक्राद के रूप में जाना जाता है। हरेला को लेकर मान्यता है कि घर में बोया जाने वाला हरेला जितना बड़ा होगा, पहाड़ के लोगों को खेती में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा।
कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। इस दिन प्रकृति पूजन किया जाता है। धरा को हरा-भरा किया जाता है। पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में बोया जाता है। जिसे मंदिर में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को पानी दिया जाता है और उसकी गुड़ाई की जाती है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। इसे सूर्य की सीधी रोशन से दूर रखा जाता है। जिस कारण हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला हो जाता है। हरेला पर्व के दिन परिवार का बुजुर्ग सदस्य हरेला काटता है और सबसे पहले अपने ईष्टदेव को चढ़ाया जाता है। अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग व दूसरे वरिष्ठजन परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में धमुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं। मान्यता है कि घर में बोया जाने वाला हरेला जितना बड़ा होगा। खेती में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा। हरेला पूजन के बाद लोग अपने घरों और बागीचों में पौधारोपण भी करते हैं। हरेला पूजन के दौरान आशीर्वचन भी बोला जाता है।