लोकसभा के बाद सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली सेवा बिल राज्यसभा में भी पेश कर दिया है। इस बिल को लेकर राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बहस चल रही है। इस बिल को लेकर कांग्रेस-AAP समेत तमाम विपक्षी दलों ने विरोध जताया है। विपक्षी सांसदों ने कहा कि इस बिल को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। दिल्ली के अधिकारों को लेकर चल रही जंग में अरविंद केजरीवाल को 26 विपक्षी दलों (INDIA) के गठबंधन का समर्थन है। जबकि मोदी सरकार पास NDA के अलावा वाईएसआर और टीडीपी इस बिल का समर्थन कर रही है। बीजेडी के राज्यसभा सांसद सस्मित पात्रा ने कहा, उनकी पार्टी दिल्ली अध्यादेश बिल का समर्थन करती है। यह बिल दिल्ली में सेवाओं के नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ दिनों बाद मई में केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश को बदलने का प्रयास करता है। वहीं, जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी इस बिल के समर्थन में खड़ी है। चर्चा के दौरान YSR के सांसद वी. विजयसाई रेड्डी ने कहा कि हमारा संविधान संसद को दिल्ली के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है। इस बिल के किसी भी विरोध का कोई संवैधानिक आधार नहीं है। विपक्ष बेवजह बाधा डाल रहा है. AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि यह बिल राजनैतिक धोखा है। उन्होंने कहा कि एक समय बीजेपी खुद दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा जाने की मांग कर रही थी।
दिल्ली सेवा बिल पर कांग्रेस बोली- ये असंवैधानिक–
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बिल को असंवैधानिक करार दिया है। बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘बीजेपी दिल्ली में सुपर सीएम बनाने की कोशिश में जुटी है। भाजपा का दृष्टिकोण किसी भी तरह दिल्ली पर नियंत्रण करने का है। वह चुनी हुई सरकार के अधिकारों को छीनना चाहती है। यह बिल पूरी तरह से असंवैधानिक और मौलिक रूप से अलोकतांत्रिक है। यह संघवाद के सभी सिद्धांतों, सिविल सेवा जवाबदेही के सभी मानदंड़ों और चुनी हुई सरकार के सभी मॉडलों का उल्लंघन करता है।