(Dusshera vijaydashmi festival celebrate) : आज पूरा देश दशहरा के रंग में रंगा हुआ है। इस पावन दिन का लोग पूरे साल इंतजार करते हैं। एक ऐसा दिन जिसमें खुशियां हैं, खरीदारी और शुभ कार्य करने का सबसे शुभ मुहूर्त भी है। शारदीय नवरात्र के समापन के अगले दिन विजयदशमी यानी दशहरा पर्व मनाया जाता है। वैसे तो देश के छोटे-बड़े शहरों में मनाया जाने वाला दशहरा उत्सव अपने आप में इतिहास समेटे हुए हैं। लेकिन हर साल विजयदशमी पर्व पर देश के दो शहर प्रत्येक देशवासियों को जरूर याद आते हैं, जिसमें मैसूर और कुल्लू है। मैसूर में दशहरा का उत्साह पूरे 10 दिनों तक चलता है वहीं कुल्लू में 7 दिनों तक दशहरे की धूम रहती है। इन दोनों शहरों में दशहरा देखने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। मैसूर, कुल्लू में दशहरा उत्सव कैसे मनाया जाता है इसे हम आपको बताएं उससे पहले यह भी जान लेते हैं आज देश में विजयदशमी पर्व को लेकर क्या-क्या तैयारियां चल रही हैं। विजयदशमी पर्व को लेकर पूरे देश में उल्लास का माहौल छाया हुआ है। सोशल मीडिया पर सुबह से ही एक दूसरे को विजयदशमी की बधाई संदेश शुरू हो गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत तमाम राजनीतिक दलों ने देशवासियों को विजयदशमी पर्व पर शुभकामनाएं दी हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश के कुल्लू दशहरा में शामिल होने पहुंच गए हैं। इससे पहले अभी पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा कि मुझे हमेशा हिमाचल प्रदेश में आकर आनंद की अनुभूति होती है। यह एक ऐसा पर्व है जो असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रति के रूप में मनाया जाता है। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर दशहरा का पर्व मनाया जाता है। साल में विजयादशमी की तिथि ऐसी है जिसे बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त के शुभ कार्य किए जा सकते हैं क्योंकि ये तिथि अबूझ मुहूर्त है। खासकर खरीदारी के लिए ये बहुत शुभ दिन माना जाता है। दिवाली और शादियों की शॉपिंग दशहरा से शुरू हो जाती है। विजयादशमी पर वाहन खरीदने का ज्यादा महत्व है। विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपना स्थापना दिवस मना रहा है। संघ मुख्यालय नागपुर में आज सुबह पथ संचलन भी किया गया। इस मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संबोधित भी किया।

दशहरा को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को रावण पर भगवान राम की जीत का दिन माना जाता है और बुराई पर अच्छाई के जीत का जश्न मनाते हैं। रावण ने श्री राम की पत्नी देवी सीता को बंधक बना लिया था। ऐसा माना जाता है कि युद्ध के लिए रवाना होने से पहले, भगवान राम ने अपनी जीत के लिए देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। रावण के खिलाफ युद्ध दस दिनों तक चला। दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध किया और जिस दिन उन्होंने रावण का वध किया था । जिसके बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरम माता सीता को वापस लेकर आए थे, जिसकी खुशी में हर दशहरे का त्योहार मनाया जाता है। दशहरा त्योहार अधर्म पर धर्म की विजय को बताता है। इस दिन देशभर में रावण दहन होगा। लोग धूमधाम से इस उत्सव को मनाते हैं और खुशियां बांटते हैं। अब आइए जानते हैं मैसूर और कुल्लू के विश्व प्रसिद्ध दशहरा उत्सव को लेकर।




मैसूर और कुल्लू में दशहरा उत्सव सबसे बड़े त्योहार के रूप में मनाए जाते हैं–
देशभर में दशहरे का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत के कुछ शहरों के दशहरा में भी अपनी अनोखी खासियत है। यह देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी मशहूर है। मैसूर का दशहरा भी देश में काफी प्रसिद्ध है। दशहरे के लिए मैसूर पैलेस को हजारों दीपक से सजाया गया है। मैसूर के अम्बा विलास महल का खूबसूरत नजारा देखने कई पर्यटक आते हैं। मान्यताओं के मुताबिक, मैसूर का नाम भी महिषासुर नाम के असुर के नाम पर पड़ा है, जिसका माता दुर्गा ने वध किया था। इसके चलते आज भी हर साल दशहरा के अवसर पर मैसूर में नाच-गाने के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। दशहरे के दिन मैसूर का शाही परिवार पूजा करता है। इसके साथ ही शाही दरबार का आयोजन भी होता है। माना जाता है कि मैसूर के शाही परिवार द्वारा दशहरे की सवारी की शुरुआत 15वीं शताब्दी में वाडिया राजा वोडेयार ने की थी। कर्नाटक में दशहरा बाकी दूसरे फेस्टिवल्स से कहीं ज्यादा खास होता है। यहां इसे नादहब्बा कहा जाता है। जिसमें मैसूर का शाही परिवार इस दिन पूजा करता है और साथ ही शाही दरबार का आयोजन भी होता है। ऐसा मानते हैं कि मैसूर के शाही परिवार द्वारा दशहरे की सवारी की शुरुआत 15वीं शताब्दी में वाडिया राजा वोडेयार द्वारा की गई थी। दूसरा यह भी माना जाता है कि इसी दिन चामुंडेश्वरी देवी ने महिषासुर राक्षस का वध किया था। समय बीतने के साथ ही जगह-जगह दशहरे मनाने के तरीकों में कई तरह के बदलाव किए गए। लेकिन आज भी मैसूर के दशहरे जैसी भव्यता कहीं और देखने को नहीं मिलती। इसका शाही अंदाज आज भी कायम है। इस दिन का खास आकर्षण होता है शाही दरबार और मैसूर पैलेस से लेकर बन्नीमंडप मैदान तक निकलने वाली सवारी। दशहरे के पहले दिन शाही तलवार की पूजा होती है। इस दिन की सवारी में हाथी, घोड़े, ऊंट, नर्तक सभी शामिल होते हैं। अगले दिन जंबो सवारी होती है। लगभग पूरे शहर का चक्कर लगाने वाली इस सवारी के लिए हाथियों को खासतौर से ट्रेनिंग दी जाती है। एक हाथी की पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी की बड़ी सी प्रतिमा विराजमान होती है। इस सवारी में सुंदर-सुंदर झांकियां भी शामिल होती है। कहा जाता है कि बन्नीमंडप मैदान में ही वह पेड़ स्थित है जहां पांडवों ने अज्ञातवास प्रस्थान से पहले अपने अस्त्र-शस्त्र छिपाए थे। यहां के दशहरे को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक और फोटोग्राफर्स आते हैं। ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव (International Kullu Dussehra) को लेकर सभी तैयारियां पूरी हो चुकी है। आज से इस दशहरे का आगाज होगा। इस दशहरे में भाग लेने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कल कुल्लू आएंगे। इस अद्भुत पर्व में स्वर्ग से धरती पर देवी-देवता आते हैं और लोगों की उत्सव को लेकर अटूट आस्था जुड़ी हुई है। वहीं, इस साल कुल्लू दशहरा उत्सव कई मायने में खास है। क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज इस मेले में शिरकत करने के लिए कुल्लू आ रहे हैं। यह पहला मौके होगा जब देश के प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में शिरकत करेंगे। यहां इस पर्व को मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के राज में 1637 से शुरू हुई थी। भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव बुधवार को शुरू होगा। ढालपुर मैदान में 5 से 11 अक्तूबर तक चलने वाले इस भव्य देव-मानस मिलन के लिए जिले भर से करीब 250 देवी-देवता पहुंचे हैं।