डिजिटल एकीकरण- ह्यूमन इंटरफेस और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए फेसलेस मूल्यांकन और डिजिटल अनुपालन को सक्षम बनाना।
करदाता-केंद्रित दृष्टिकोण- फाइलिंग की सुविधा में सुधार, मुकदमेबाजी में कमी, तथा पारदर्शिता में वृद्धि।
वैश्विक तालमेल- डिजिटल परिसंपत्तियों पर कराधान और वैश्विक आय सहित समकालीन आर्थिक वास्तविकताओं को दर्शाना।
आयकर अधिनियम, 2025 का सरलीकृत ढांचा
नये आयकर अधिनियम को काफी सरल बना दिया गया है, इसमें कम धाराएं और अध्याय हैं, जिससे इसे समझना और लागू करना आसान हो गया है। इसमें स्पष्टता में सुधार के लिए उपयोगी तालिकाओं और सूत्रों के साथ संरचित कार्यक्रम शामिल हैं। कुल मिलाकर, बेहतर पहुंच और पारदर्शिता के लिए भाषा और लेआउट को सुव्यवस्थित किया गया है। महत्वपूर्ण रूप से, यह अधिनियम उपयोगिता को बढ़ाते हुए निरंतरता सुनिश्चित करते हुए मौजूदा कराधान सिद्धांतों को संरक्षित करता है। ये सुधार एक सरल और पारदर्शी कर ढांचा स्थापित करके व्यापार करने में आसानी में सुधार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
आयकर अधिनियम, 2025 की प्रमुख विशेषताएं
आयकर अधिनियम, 2025 भारत में प्रत्यक्ष कराधान के लिए एक सुव्यवस्थित और आधुनिक ढांचा प्रस्तुत करता है। यह संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों के माध्यम से स्पष्टता, सरलीकरण और बेहतर अनुपालन पर केंद्रित है। यह अधिनियम पारदर्शिता बढ़ाने, मुकदमेबाजी कम करने और तकनीकी विकास के साथ तालमेल बिठाने के लिए बनाया गया है।
“कर वर्ष” (Tax Year) का परिचय
इसमें सबसे अहम बदलाव “कर वर्ष” (Tax Year) की शुरुआत है, जो पुराने “वित्त वर्ष” (Financial Year) और “आकलन वर्ष” (Assessment Year) को बदल देगा। इस बदलाव का उद्देश्य भ्रम को कम करना, लोगों के लिए सही और समय पर कर दाखिल करना आसान बनाना और एक एकल, एकीकृत अवधारणा के साथ बदलकर कर शब्दावली को सरल बनाता है। इसे वित्तीय वर्ष की बारह महीने की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है जो 1 अप्रैल से शुरू होती है। इस परिवर्तन का उद्देश्य स्पष्टता लाना तथा करदाताओं के लिए यह समझना आसान बनाना है कि उनकी आय और कर दाखिल किस वित्तीय अवधि से संबंधित हैं, जिससे अनुपालन और व्याख्या में अस्पष्टता कम हो जाएगी।
योजनाओं को आकार देने में मदद
यह अधिनियम केंद्र सरकार को कर प्रशासन में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार के उद्देश्य से नई योजनाओं को तैयार करने के लिए अधिकृत करता है (धारा 532)। यह निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है। तकनीकी रूप से संभव सीमा तक करदाता या किसी अन्य व्यक्ति के साथ इंटरफेस को समाप्त करना, और आर्थिक अनुकूलता और कार्यात्मक विशिष्टीकरण के माध्यम से संसाधनों के उपयोग को अनुकूल बनाना।
सरल अनुपालन
अधिक स्पष्टता के लिए कई प्रावधानों को एक साथ लाया गया है। उदाहरण के लिए, स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) से संबंधित प्रावधान, जो पहले कई धाराओं में विभाजित थे, अब सुव्यवस्थित कर दिए गए हैं और उन्हें एक ही धारा – धारा 393 – के अंतर्गत समूहीकृत कर दिया गया है। इसे एक करने का उद्देश्य कानूनी ढांचे को सरल बनाना है, जिससे करदाताओं, पेशेवरों और अधिकारियों के लिए कई अलग-अलग खंडों को देखे बिना टीडीएस से संबंधित नियमों का पता लगाना और उनकी व्याख्या करना आसान हो जाएगा।
डिजिटल फर्स्ट एनफोर्समेंट
वर्चुअल डिजिटल स्पेस को एक ऐसे वातावरण, क्षेत्र या दायरे के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका निर्माण और अनुभव कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के माध्यम से किया जाता है। इसमें ईमेल सर्वर, क्लाउड सर्वर, सोशल मीडिया खाते, ऑनलाइन निवेश और ट्रेडिंग खाते, तथा परिसंपत्ति स्वामित्व का विवरण संग्रहीत करने वाली वेबसाइटें शामिल हैं।
वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों का दायरा बढ़ाकर अब ऐसी किसी भी परिसंपत्ति को शामिल किया गया है जिसका मूल्य डिजिटल रूप में है तथा जो क्रिप्टोकरंसी या इसी प्रकार की प्रौद्योगिकियों जैसे क्रिप्टोग्राफिक लेजर सिस्टम का उपयोग करके संचालित होती है।
उल्लेखनीय है, विवाद समाधान -आयकर अधिनियम, 2025 विवादों के समाधान के लिए एक अधिक मजबूत और करदाता के अनुकूल ढांचा प्रस्तुत करता है। यह अधिनियम भारत में अधिक पारदर्शी, कुशल और करदाता के अनुकूल प्रत्यक्ष कर प्रणाली के निर्माण की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम का प्रतिनिधित्व करता है। कानूनी संरचनाओं को सरल बनाकर, डिजिटल प्रक्रियाओं को अपनाकर और वैश्विक मानकों के साथ तालमेल से यह अधिनियम एक आधुनिक राजकोषीय ढांचे की नींव रखता है।