Dharali Tragedy : धराली की तबाही से रो पड़ी "देवभूमि की आंखें", संकट की इस घड़ी में डटे रहे सीएम धामी - Daily Lok Manch PM Modi USA Visit New York Yoga Day
August 8, 2025
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Dharali Tragedy : धराली की तबाही से रो पड़ी “देवभूमि की आंखें”, संकट की इस घड़ी में डटे रहे सीएम धामी

उत्तराखंड में एक बार फिर आपदा का पहाड़ टूट पड़ा। उत्तरकाशी के थराली में आई जल प्रलय चंद सेकेंड में सब कुछ बहा ले गई ‌। उत्तरकाशी का धराली पूरी तरह तबाह हो गया। 5 अगस्त, दिन मंगलवार, साल 2025… यह तारीख देवभूमि की यादों में हमेशा के लिए एक गहरा और दर्दनाक जख्म बनकर रह जाएगी। शाम का सूरज ढला भी नहीं था कि पहाड़ों की गोद में बसी शांत और खूबसूरत धराली पर सैलाब का कहर टूट पड़ा। कुछ ही मिनटों में प्रकृति की गोद में बसा यह रमणीय गांव मौत, चीखों और तबाही के मंजर में बदल गया। तेज गर्जना के साथ बहते पानी और मलबे की आवाज ने सब कुछ ढक लिया, और जो दृश्य सामने आया, वह हर किसी की आंखों में हमेशा के लिए बस गया। इस आपदा में पांच लोगों की मौत हो गई। सैकड़ों लोग लापता हैं। मंगलवार दोपहर करीब दो बजे अचानक ऊपरी इलाकों से पानी का भयानक सैलाब धराली में घुस आया। यह सिर्फ पानी नहीं था, बल्कि इसमें चट्टानें, टूटे मकानों के अवशेष, लकड़ी के भारी लट्ठे, मिट्टी और पेड़ों के तने बह रहे थे। रास्ते में आने वाली हर चीज को यह सैलाब अपने साथ बहा ले गया।

खेती के खेत, फलदार बागान, गांव के पुराने मंदिर, स्कूल, बाजार की दुकानें, और सैकड़ों परिवारों के सपने। सुबह तक जहां बच्चे गलियों में खेल रहे थे, वहां अब मलबे और पानी के सिवा कुछ नहीं बचा था। धराली में सुबह मौसम सामान्य था, लेकिन दोपहर बाद ऊपरी पहाड़ी इलाकों में लगातार बारिश होती रही। शाम होते-होते गंगा की सहायक धारा उफान पर आ गई और उसका पानी सीधे धराली पर टूट पड़ा। चंद मिनटों में ही पूरा इलाका जलमग्न हो गया, और बहाव इतना तेज था कि लोग अपनी जगह से हिल भी नहीं पाए। कई घरों के लोग मलबे में दब गए, और कई बहाव के साथ दूर तक चले गए।तबाही इतनी भयावह थी कि कोई अपने घर से कुछ भी बचा नहीं पाया। बर्तन, कपड़े, अनाज के बोरे, खेत के औजार सब पानी में बह गए। हवा में मिट्टी, गम और नमी की गंध फैली हुई थी। कई जगह लाशें पानी में तैरती दिखीं, तो कई घायल लोग मदद के लिए पुकारते नजर आए। अब तक पांच लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि सैकड़ों लोग लापता बताए जा रहे हैं। कई गांवों से संपर्क टूट चुका है, और बिजली-पानी की आपूर्ति पूरी तरह ठप हो गई है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचकर राहत-बचाव कार्य में जुटी हैं। स्थानीय युवक और स्वयंसेवक भी अपनी जान जोखिम में डालकर मलबे में फंसे लोगों को निकालने में मदद कर रहे हैं। लेकिन लगातार बारिश और टूटी सड़कों के कारण बचाव अभियान बेहद मुश्किल हो गया है। हेलिकॉप्टर से राहत सामग्री पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन खराब मौसम बड़ी चुनौती बना हुआ है। गांव के लोगों का कहना है कि ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। हमारी धराली खत्म हो गई। बस नाम बाकी है। वहीं, एक महिला ने बिलखते हुए बताया कि उसका बेटा और पति अब तक लापता हैं, और कोई खबर नहीं मिल रही। बच्चों के चेहरे पर डर और भूख की लकीरें साफ झलक रही हैं। प्रशासन ने आपदा को देखते हुए स्कूल, पंचायत भवन और मंदिरों को अस्थायी राहत शिविरों में बदल दिया है। यहां पीने का पानी, खाने के पैकेट, कंबल और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था की जा रही है। हालांकि, शिविरों में भी भीड़ और संसाधनों की कमी साफ नजर आ रही है। कई लोग अपने परिजनों की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं, और मोबाइल नेटवर्क बंद होने से लोगों की बेचैनी और बढ़ गई है। धराली की तबाही ने न सिर्फ घर-परिवार उजाड़े हैं, बल्कि कई लोगों का रोज़गार भी खत्म कर दिया है। यहां के अधिकांश लोग पर्यटन, खेती और छोटे व्यापार पर निर्भर थे। सैलाब में खेतों की मिट्टी बह गई है, बगीचों के पेड़ उखड़ गए हैं, और होटल-धाबे मलबे में दब गए हैं। अनुमान है कि करोड़ों रुपये की संपत्ति बर्बाद हो चुकी है, और गांव को फिर से खड़ा करने में सालों लग जाएंगे। रात होते-होते पूरे इलाके में सन्नाटा पसर गया। सिर्फ मलबे में से रिसते पानी की आवाज और दूर से आती मदद की पुकारें सुनाई दे रही थीं। बच्चे अपनी मां की गोद में सिमटे हुए थे, और बुजुर्ग जमीन पर बैठकर टूटे घरों की ओर टकटकी लगाए देख रहे थे। इस खामोशी में एक गहरी पीड़ा थी। धराली की पहचान, उसकी रौनक और उसकी जिंदगी, सब कुछ पल भर में छिन गया।धराली के लोग हैरान हैं कि कैसे कुछ ही सेकंड में उनका पूरा गांव खत्म हो गया। इस हादसे ने उत्तराखंड की नाजुक भूगोल और लगातार बढ़ते जलवायु संकट पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ों में अनियंत्रित निर्माण, वनों की कटाई और जलधाराओं के रास्ते में अतिक्रमण ने इस तबाही को और बढ़ा दिया। अगर जल्द ही सतत विकास और आपदा प्रबंधन पर गंभीरता से काम नहीं किया गया, तो भविष्य में ऐसी त्रासदियां और बढ़ सकती हैं। फिलहाल, धराली के लोग अपने टूटे घरों के मलबे में अपने खोए परिजनों और बची-खुची यादों को ढूंढ रहे हैं। हर चेहरे पर एक ही सवाल है क्या हम कभी फिर से अपने गांव को वैसे देख पाएंगे जैसा वह कल तक था?” देवभूमि की आंखों में दर्द है, लेकिन उसके दिल में उम्मीद की एक छोटी सी लौ भी है कि शायद आने वाले दिन कुछ राहत लेकर आएं। यह हादसा सिर्फ धराली की कहानी नहीं है, बल्कि उस पूरी देवभूमि का दर्द है, जिसने अपनी गोद में बसा एक और बेटा खो दिया। पहाड़ों की ठंडी हवाएं भी अब यहां गर्म आंसुओं में भीग चुकी हैं, और गंगा की लहरें जैसे इस बार सिर्फ बह नहीं रहीं बल्कि शोक में धीरे-धीरे बह रही हैं।





धराली की संकट घड़ी में सीएम धामी ने फिर संभाली कमान–



उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली क्षेत्र में आई भीषण आपदा ने जनजीवन को झकझोर कर रख दिया। तेज बारिश और भूस्खलन से मची तबाही के बीच जब सब कुछ थम-सा गया था, तब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक बार फिर उम्मीद की किरण बनकर सामने आए। धराली में जब यह आपदा आई तब सीएम धामी आंध्र प्रदेश में थे वहां से सीधे देहरादून पहुंचे। मुख्यमंत्री धामी ने अपने सभी महत्वपूर्ण काम छोड़कर धराली में मोर्चा संभाला । पीड़ितों के आंसू पोंछने और उन्हें ढांढस बंधाने के लिए उन्होंने खुद मौके पर पहुंचकर राहत व बचाव कार्यों की कमान संभाली। मुख्यमंत्री धामी ने घटनास्थल पर पहुंचते ही सबसे पहले स्थानीय लोगों और प्रभावित परिवारों से मुलाकात की। जिनके घर उजड़ गए, जिनकी आंखों के सामने अपनों को प्रकृति ने छीन लिया । उनके साथ खड़े होकर उन्होंने सिर्फ प्रशासनिक घोषणा नहीं की, बल्कि एक संवेदनशील जनसेवक की तरह दिल से जुड़कर उन्हें भरोसा दिया। उन्होंने कहा, आप अकेले नहीं हैं, पूरा उत्तराखंड आपके साथ है। जब तक अंतिम पीड़ित को मदद नहीं मिलती, हम चैन से नहीं बैठेंगे। घटनास्थल पर पहुंचकर उन्होंने राहत शिविरों का निरीक्षण किया, घायलों का हाल जाना और अधिकारियों को निर्देश दिया कि राहत कार्यों में कोई देरी या लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। स्थानीय लोग बताते हैं कि जैसे ही मुख्यमंत्री पहुंचे, वहां मौजूद पीड़ितों की आंखें भर आईं । कई लोगों ने उनसे लिपटकर अपने दर्द बयां किए, तो कुछ ने बस हाथ जोड़कर कहा कि धन्यवाद मुख्यमंत्री जी, आपने हमें अकेला नहीं छोड़ा। मुख्यमंत्री ने हेलीकॉप्टर और जमीनी संसाधनों के जरिए फंसे लोगों को बाहर निकालने के आदेश दिए। पीने का पानी, भोजन, दवाइयों और रहने की अस्थायी व्यवस्था को प्राथमिकता पर रखा गया। उन्होंने जिलाधिकारी और एसडीआरएफ को 24 घंटे क्षेत्र में डटे रहने को कहा और खुद राहत कार्यों की निगरानी करते रहे। मुख्यमंत्री धामी का यह मानवीय चेहरा एक बार फिर उत्तराखंड की जनता के दिल में जगह बना गया। संकट की घड़ी में जब सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति खुद पीड़ितों के बीच पहुंचे, तो वह केवल एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक आश्वासन बन जाता है कि हम अकेले नहीं हैं।


मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को जब धराली में आई त्रासदी की जानकारी मिली उस समय वो आंध्र प्रदेश के तिरुपति में थे। आपदा की सूचना मिलते ही उन्होंने तत्काल अधिकारियों को युद्धस्तर पर राहत और बचाव कार्य शुरू करने के निर्देश दिए। जिला प्रशासन ने सेना। एनडीआरएफ। एसडीआरएफ। पुलिस। अग्निशमन विभाग। आईटीबीपी के साथ मिलकर राहत व बचाव कार्य शुरू किया। 5 अगस्त को आंध्र प्रदेश का दौरा स्थगित कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शाम को ही राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र देहरादून पहुंचे और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में चल रहे राहत व बचाव अभियान की जानकारी ली। जिसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को फोन पर घटना के संबंध में बताया। पहले दिन शाम तक 130 से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू किया गया। मुख्यमंत्री ने आपदा प्रभावितों के खाने-पीने और रहने की उचित व्यवस्था के निर्देश दिए। हर्षिल क्षेत्र में झील बनने की सूचना पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को इस पर उचित कार्रवाई के लिए कहा गया। प्रभावितों को एयरलिफ्ट करने और बचाव कार्य में वायु सेना के एमआई-17 की मदद लेने के निर्देश भी जारी किए गए।
आयुक्त गढ़वाल विनय शंकर पांडेय को आपदा के दृष्टिकोण से नोडल अफसर नियुक्त किया। साथ ही। उत्तरकाशी जिले में डीएम रह चुके अपर सचिव डा मेहरबान सिंह बिष्ट। अभिषेक रोहिल्ला और गौरव कुमार को अहम जिम्मेदारी दी गई। अपर सचिव विनीत कुमार को उत्तरकाशी में ही कैंप करने के आदेश जारी किए गए। धराली में दो आईजी। तीन एसपी। एक कमाडेंट और 11 डिप्टी एसपी सहित 300 पुलिसकर्मियों को देहरादून से उत्तरकाशी जिले के लिए रवाना किया गया। देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी और टिहरी जिले के आरक्षी से लेकर निरीक्षक स्तर के 160 पुलिस कार्मिकों को भी उत्तरकाशी भेजा गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आपदा मोचन निधि से आपदा राहत एवं बचाव कार्य के लिए बीस करोड़ की धनराशि जारी की गई। विभिन्न विभागों के सचिवों अगले दिन ही धराली-हर्षिल पहुंचने के निर्देश जारी किए। उत्तरकाशी के धराली आपदा के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीते तीन दिनों से मोर्चे पर डटे हैं और लगातार ग्राउंड जीरो पर रहकर रेस्क्यू ऑपरेशन की हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए हैं।



धराली में अभी कुछ दिनों तक जारी रहेगा राहत बचाव कार्य–



उत्तराखंड के धराली गांव में आए विनाशकारी बादल फटने और फ्लैश फ्लड से प्रभावित राहत-बचाव कार्य अभी बेहद चुनौतीपूर्ण है। वायुसेना के चिनूक और एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के माध्यम से भारी मशीनरी जैसे जेसीबी आदि को एयरलिफ्ट किया जा रहा है, लेकिन खराब मौसम, टूटी सड़कें और ऊंचाई पर स्थित इलाक़े की कठिन भौगोलिक स्थितियों की वजह से ये उपकरण पहुंचने में तीन दिन और लग सकते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मौसम के तेजी से बिगड़ते रुख की जानकारी मिलने के बाद तत्काल ये निर्देश जारी किए कि राहत कार्यों को तेज गति से आगे बढ़ाने के लिए वायुसेना की मदद ली जाए। उन्होंने कई एजेंसियों। सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, बीआरओ और अधिकारियों को एकजुट कर युद्ध स्तर पर अभियान चलाने को कहा। हालांकि, शुरुआती बचाव प्रयासों में करीब 400 लोगों को बचाया जा चुका है, लेकिन चार लोग मारे गए और कई अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। चिनूक हेलीकॉप्टरों को भारी उपकरण लेकर जेलोक्लेल्ड इलाक़ों में उतारने के लिए तैयार किया गया है, लेकिन निगरानी रिपोर्ट और विशेषज्ञों के अनुसार, मौसम की अनिश्चितता और कराने के लिए सामान को सही जगह पर उतारने में अतिरिक्त समय लगेगा। जैसे-जैसे मौसम खर्चा होते जाएगा और हेलमैन और मशीनें राहत शिविरों और प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचेंगी, राहत कार्यों में नई गति आएगी।
उत्तराखंड सरकार व केंद्रीय एजेंसियों ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मुश्किल परिस्थिति में तेज और कुशल बचाव प्राथमिकता है, और सभी एडवांस मशीनरी व सहायता साधन सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।




प्राकृतिक सौंदर्य, सेब बागान और आस्था का संगम है धराली–



उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित धराली अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, सेब बागानों और धार्मिक महत्त्व के लिए पूरे देश में जाना जाता है। गंगोत्री धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह एक प्रमुख पड़ाव होता है, और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं। धराली समुद्रतल से लगभग 2,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ है। चारों ओर फैले देवदार, भोजपत्र और बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच यह गांव न केवल शांत वातावरण देता है, बल्कि हर मौसम में अलग-अलग रूपों में प्रकृति का जादू बिखेरता है। धराली उत्तराखंड के प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। यहां की जलवायु और मिट्टी सेब की खेती के लिए बेहद अनुकूल मानी जाती है। अगस्त-सितंबर के महीनों में जब यहां के सेब बाजारों तक पहुंचते हैं, तो यह क्षेत्र किसानों की मेहनत और हिमालयी मिठास का प्रतीक बन जाता है। धराली गंगोत्री धाम से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिस कारण धार्मिक पर्यटकों का यहां आना-जाना लगा रहता है। साथ ही, यहां का श्री राम मंदिर और आसपास के अन्य छोटे मंदिर भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। गर्मियों में बड़ी संख्या में तीर्थयात्री और पर्यटक यहां रुकते हैं। धराली के आस-पास कई खूबसूरत ट्रेकिंग रूट्स भी हैं जैसे डायट्री ट्रेक, नंदनवन ट्रेक और गंगोत्री-गौमुख ट्रेक, जो रोमांच प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं। यह क्षेत्र उन पर्यटकों के लिए स्वर्ग है जो प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ रोमांच की तलाश में रहते हैं। हाल के दिनों में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण धराली क्षेत्र प्राकृतिक आपदा की चपेट में आया, जिससे यहां की स्थिति कठिन हो गई। हालांकि, इसने एक बार फिर इस क्षेत्र को राष्ट्रीय फोकस में ला दिया और यहां की भूगोलिक संवेदनशीलता पर बहस को जन्म दिया है। धराली केवल एक गांव नहीं, यह उत्तरकाशी की आत्मा है जहां हिमालय की गोद में आस्था, मेहनत और प्राकृतिक सुंदरता एक साथ सांस लेती है।

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