राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 1925 में विजयादशमी के पावन अवसर पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में जिस संगठन की नींव रखी थी, वह आज एक सदी बाद भारत की सबसे बड़ी सांस्कृतिक शक्ति के रूप में खड़ा है। संघ ने अपनी स्थापना से लेकर अब तक देश की सेवा, समाज में अनुशासन और राष्ट्रभाव को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया है। यह यात्रा केवल एक संगठन की नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की चेतना और आत्मा की यात्रा कही जा सकती है। संघ की पहचान उसके अनुशासन और संगठनात्मक क्षमता से होती है। सुबह-शाम लगने वाली शाखाओं के माध्यम से पीढ़ियों को न केवल शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण दिया गया, बल्कि उनमें राष्ट्रप्रेम, सेवा और संस्कार की भावना का बीजारोपण किया गया। यह शाखाएं केवल व्यायाम या खेल का माध्यम नहीं रहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन और राष्ट्रभाव के साथ कार्य करने का प्रशिक्षण स्थल बनीं। यही कारण है कि आज संघ की शाखाएं गांव-गांव और शहर-शहर तक फैली हुई हैं और विदेशों में बसे भारतीय भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। संघ का इतिहास सेवा और बलिदान से भरा हुआ है। 1947 के विभाजन के दौरान लाखों शरणार्थियों के पुनर्वास और सेवा कार्यों में संघ की भूमिका अविस्मरणीय रही। 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में स्वयंसेवकों ने सीमाओं तक जाकर सैनिकों की सहायता की, उनके लिए भोजन, कपड़े और राहत सामग्री पहुंचाई। प्राकृतिक आपदाओं के समय भी संघ ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। गुजरात भूकंप, ओडिशा चक्रवात, उत्तराखंड आपदा और हाल ही में कोविड-19 महामारी में स्वयंसेवकों ने राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान दिया। कोरोना महामारी के दौरान संघ ने देशभर में भोजन वितरण, मास्क और सैनिटाइजर बांटने से लेकर अस्पतालों और क्वारंटीन केंद्रों में सेवा करने तक अपनी निस्वार्थ भावना का परिचय दिया। सिर्फ सेवा ही नहीं, संघ ने शिक्षा और संस्कार के क्षेत्र में भी बड़ा कार्य किया है। विद्या भारती जैसे संगठन आज देशभर में हजारों विद्यालय चला रहे हैं, जहां बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कृति और मूल्यों का पाठ पढ़ाया जाता है। बाल संस्कार केंद्र, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठन युवाओं को राष्ट्र सेवा की ओर प्रेरित कर रहे हैं। संघ का मानना है कि राष्ट्र का भविष्य उसकी नई पीढ़ी में निहित है और यदि शिक्षा के साथ संस्कार दिए जाएं तो समाज में स्थायी परिवर्तन संभव है। राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी न लेने के बावजूद संघ ने हमेशा राजनीति को राष्ट्र निर्माण का साधन माना है। जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के निर्माण में संघ की भूमिका ऐतिहासिक रही है। आज भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में खड़ी है और इसके पीछे संघ की विचारधारा, संगठनात्मक क्षमता और प्रशिक्षण का गहरा प्रभाव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अनेक केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री तक संघ की शाखाओं से निकले हुए स्वयंसेवक हैं। संघ का मार्गदर्शन भाजपा को केवल चुनावी राजनीति में ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के हर प्रयास में दिशा देता रहा है। सांस्कृतिक चेतना और स्वदेशी भावना जगाने में भी संघ की भूमिका अहम रही है। “गर्व से कहो हम हिंदू हैं” का नारा हो या स्वदेशी को अपनाने का आह्वान, संघ ने सदैव भारत की अस्मिता और आत्मगौरव को जागृत किया। आज “मेक इन इंडिया”, “वोकल फॉर लोकल” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों की पृष्ठभूमि में संघ की विचारधारा की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। संघ का उद्देश्य हमेशा यही रहा कि भारतीय समाज अपनी जड़ों से जुड़ा रहे और साथ ही आधुनिकता को भी आत्मसात करे।हालांकि संघ को अपने लंबे इतिहास में आलोचनाओं और विवादों का भी सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका को लेकर प्रश्न उठे, विचारधारा पर बहसें हुईं और समय-समय पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे। लेकिन इन सबके बीच संघ ने अपने मूल उद्देश्य यानी राष्ट्र सेवा और समाज निर्माण से कभी समझौता नहीं किया। आलोचनाओं का उत्तर संघ ने हमेशा अपने अनुशासन और सेवा कार्यों के माध्यम से दिया। आज संघ 100 वर्ष पूरे कर चुका है और इसका विस्तार अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। अनुमान है कि देशभर में 50,000 से अधिक शाखाएँ संचालित हो रही हैं और लाखों स्वयंसेवक प्रतिदिन इनमें हिस्सा ले रहे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, ग्रामीण विकास, संस्कार निर्माण और सामाजिक समरसता जैसे क्षेत्रों में संघ की पहलकदमियों ने करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। संघ से जुड़े सैकड़ों संगठन आज हर क्षेत्र में सक्रिय हैं, चाहे वह विद्या भारती हो, सेवा भारती हो, वनवासी कल्याण आश्रम हो या भारतीय मजदूर संघ। यह यात्रा केवल 100 वर्षों का इतिहास नहीं है, बल्कि आने वाले भारत का भविष्य भी है। संघ और भाजपा मिलकर आज उस दिशा में काम कर रहे हैं, जहां भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना साकार हो। डिजिटल युग की चुनौतियां, बदलती वैश्विक परिस्थितियां और समाज की नई जरूरतें इस संगठन को और सशक्त बना रही हैं। संघ का भविष्य दृष्टिकोण एकात्म मानववाद, सामाजिक समरसता, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक चेतना पर आधारित है। राष्ट्र सेवा और अनुशासन की यह परंपरा आज हर भारतीय के लिए प्रेरणा है। यह संदेश देती है कि राष्ट्र निर्माण केवल सरकारों का कार्य नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है। अनुशासन, राष्ट्रभाव और सेवा की भावना से ही भारत मजबूत होगा और विश्व में अपना उचित स्थान प्राप्त करेगा। संघ की यह 100 वर्ष की यात्रा हमें यह भी याद दिलाती है कि देश सेवा और राष्ट्रप्रेम की भावना के बिना कोई भी राष्ट्र अधूरा है। आज जब भारत विकास, आत्मनिर्भरता और एकता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, तब संघ की यह सदी आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनकर सामने खड़ी है। यह केवल एक संगठन की उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह हर भारतीय की प्रेरणा है कि अगर अनुशासन और राष्ट्रभाव से कार्य किया जाए तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। संघ की यह सदी हमें यह भरोसा देती है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है और उसकी आत्मा सदैव राष्ट्रभाव और अनुशासन से ओत-प्रोत रहेगी।
100 वर्षों के सफर में संघ ने समाज के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाई—
राष्ट्रीय स्वयंसेवक स़घ ने 2 अक्टूबर 2025 को अपने 100वें स्थापना दिवस के अवसर पर नागपुर में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। इस अवसर पर संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने उपस्थित स्वयंसेवकों और देशवासियों को संबोधित करते हुए संगठन की शताब्दी यात्रा, राष्ट्र सेवा, अनुशासन और राष्ट्रभाव के महत्व पर प्रकाश डाला। संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को डॉ. के बी हेडगेवार द्वारा नागपुर में की गई थी। डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य भारतीय समाज में राष्ट्रभाव, अनुशासन और सेवा के आदर्श स्थापित करना था। 100 वर्षों के सफर में संघ ने समाज के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, सामाजिक उत्थान और सांस्कृतिक जागरूकता जैसे कार्यों में संघ ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया। संघ प्रमुख भागवत ने अपने भाषण में कहा कि संघ की सबसे बड़ी ताकत इसकी अनुशासनप्रियता, समर्पित स्वयंसेवक शक्ति और देशभक्ति में निहित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ और भाजपा का ऐतिहासिक जुड़ाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा में मार्गदर्शन का प्रतीक है। उन्होंने उपस्थित स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि वे अपने जीवन में राष्ट्र सेवा, अनुशासन और आध्यात्मिक चेतना के मूल्यों को अपनाएं और देश की प्रगति और एकता में योगदान दें। संघ के 100 वर्षों की यह यात्रा न केवल संगठन की उपलब्धि है, बल्कि यह हर भारतीय के लिए प्रेरणा है कि राष्ट्र सेवा और राष्ट्रप्रेम के बिना समाज और देश का निर्माण अधूरा है। 100 वर्षों की अनुभव और सेवा की गाथा ने यह साबित किया कि संघ, अपने अनुशासन और राष्ट्रभाव के बल पर, आने वाले समय में भी देश की एकता और समृद्धि की राह पर अडिग रहेगा। इस स्थापना दिवस कार्यक्रम में संघ के विभिन्न प्रमुख स्वयंसेवकों ने अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे संघ की शिक्षाओं ने उन्हें आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से देश सेवा में प्रेरित किया। इस अवसर ने स्पष्ट कर दिया कि संघ और भाजपा मिलकर राष्ट्रभाव और अनुशासन के मूल्यों को मजबूत करने में निरंतर प्रयासरत हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए देशभक्ति और समाज सेवा की प्रेरणा बने रहेंगे।
पीएम मोदी ने कहा- संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण था–
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह में अपने संबोधन में संघ के योगदान, उद्देश्य और राष्ट्र निर्माण में उसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने संघ की स्थापना को केवल एक संगठन की शुरुआत नहीं, बल्कि भारतीय समाज की चेतना और राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। पीएम मोदी ने कहा कि संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण था। यह संगठन न केवल शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास की दिशा में कार्य करता है, बल्कि यह राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना भी विकसित करता है। उन्होंने संघ की शाखाओं की नियमितता और अनुशासन को सराहा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संघ की शाखाएं केवल शारीरिक व्यायाम का स्थान नहीं हैं, बल्कि ये राष्ट्र सेवा की भावना और सामूहिकता की शिक्षा का केंद्र हैं। प्रधानमंत्री ने संघ के विभिन्न सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया, जैसे शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, जनजातीय उत्थान और आपदा प्रबंधन। उन्होंने कहा कि संघ ने समाज के हर वर्ग और क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संघ ने हमेशा राष्ट्र के हित में कार्य किया है, और भाजपा उसी मार्ग पर चल रही है। प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके दृष्टिकोण और कार्यों की सराहना की। प्रधानमंत्री मोदी ने संघ की 100 वर्षों की यात्रा को समर्पण, सेवा और राष्ट्र निर्माण की मिसाल बताया। उन्होंने कहा कि संघ ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी है और यह संगठन राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए निरंतर कार्यरत रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी के इस संबोधन ने संघ के योगदान को सम्मानित किया और उसकी भूमिका को राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण बताया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 पूरे होने पर जारी हुआ 100 रुपये का विशेष सिक्का जारी किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सिक्के को जारी किया । यह पहला ऐसा कॉइन है, जिस पर भारत माता की तस्वीर के साथ संघ के स्वयंसेवकों का चित्र है। जो भारत माता को नमन करने की मुद्रा में हैं।
previous post
next post

